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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


खेड़ाका झगड़ा कुछ समय पहले ही निपट गया है। समझौतेकी घोषणा करनेवाला मेरा पत्र[१] आपने अखबारोंमें देखा या नहीं? इन दिनों मैंने सैनिक-भरतीका काम शुरू किया है।

हम दोनों श्रीमती हॉजको याद करते हैं। मैं आशा रखता हूँ कि वे फिर पहले जैसी स्वस्थ हो गई होंगी।

मुझे आशा है कि बच्चोंसे जब मैं अबकी बार मिलूँगा, तबतक उनका मुझसे शर्माना खत्म हो चुकेगा। मेरा इरादा कमसे-कम तीन महीने में एक बार चम्पारन आते रहनेका है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
 

३०६. पत्र: बी० जी० हॉर्निमैनको

[नडियाद]
जून २३, १९१८

मैं नहीं जानता कि इस पत्र के साथ जो अपील[२] भेज रहा हूँ, उसके पक्षमें आप प्रतिज्ञा लेंगे या नहीं, परन्तु यदि आपने उसके पक्षमें प्रतिज्ञा ले ली तो में उसे बहुत बड़ा लाभ समझूँगा। मुझे इसकी जरूरत है। मेरा निश्चित मत है कि यदि हम सरकारको सिपाही जुटा दें और साथ-साथ सरकारके अन्यायोंके विरुद्ध लड़ाई भी लड़ते रहें तो इस तरह हम अपने सामान्य हितको लाभ पहुँचायेंगे। ये दोनों चीजें साथ-साथ की जा सकती हैं। सरकारी अधिकारियोंकी मूर्खता सैनिक-भरतीके कामको मुश्किल बना रही है। परन्तु इससे हमें निराश नहीं होना चाहिए। जो-कुछ बन पड़े, सो सब हमें करना चाहिए। विरोध-सभाओंमें जो प्रस्ताव पास हुए, उनका में यही अर्थ करता हूँ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
  1. देखिए “सन्देश: खेड़ाके लोगोंको”, ६-६-१९१८।
  2. देखिये “सैनिक-भरतीकी अपील”, २२-६-१९१८।