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३०७. पत्र: श्रीमती एडा वेस्टको

[नडियाद]
जून २३, १९१८

प्रिय श्रीमती वेस्ट,

आपका पत्र पाकर बहुत खुशी हुई। मैं चाहता हूँ कि आप अपने आर्थिक मामलोंकी चिन्ता न करें। अल्बर्ट[१] मेरे भाईके समान हैं। किसी भी कारणसे उन परसे मेरा विश्वास नहीं डिग सकता। अल्बर्टके बारेमें निराश हो जाऊँ, तब तो फिर मुझे दुनियासे निराश हो जाना चाहिए। मैंने उन्हें पत्र[२] लिख दिया है। मैं जानता हूँ कि प्रस्तुत परिस्थिति में जो कुछ करना उत्तम था, वही उन्होंने किया। यह जानकर मुझे खुशी हुई है कि आप और सैम, दोनोंने अब बच्चोंकी उचित शिक्षाकी व्यवस्था कर ली है। हिल्डा मेरी याद करती है या नहीं? मालूम नहीं मणिलालको क्या हो गया है। आप सबके लिए उसके मनमें बहुत आदर-भाव था। और आप सबने भी उसे बहुत स्नेह प्रदान किया परन्तु उसका स्वभाव वहमी बनता जा रहा है। मेरा अब भी खयाल है कि वह इसे सुधार लेगा। मैं जानता हूँ कि आपका प्रेम उसके वहमको निकाल देगा। मैं आशा रखता हूँ कि आप उससे खुद मिलेंगी, उसे समझायेंगी, बातें करेंगी और उसका मन जीत लेंगी। मैं यह विचार ही सहन नहीं कर सकता कि आपके प्रति मणि-लालके मनमें गलतफहमी रहे।

आजकल आश्रमके लिए नये मकान बनवानेका काम चल रहा है। कितना अच्छा होता कि आप इन इमारतोंको बनवाते समय यहाँ होतीं। जमीन बहुत अच्छी जगहपर है। सब कुछ मगनलाल ही सँभाल रहा है। वहाँ फीनिक्समें जब मकान बन रहे थे, तब जो काम अल्बर्ट करते थे, वही मगनलाल कर रहा है। उसे आश्रमसे बाहर कोई आनन्द ही नहीं आता।

सबको प्यार सहित,

आपका, मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
 
  1. अल्बर्ट एच० वेस्ट।
  2. यह पत्र उपलब्ध नहीं है।