पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/४६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३१
पत्र: देवदास गांधीको

 

यहाँ मेरा जीवन बहुत जटिल बन गया है। तुमने अखबारोंमें छपे मेरे कुछ महत्त्वपूर्ण पत्र तो पढ़े होंगे। आजकल मैं सैनिकोंकी भरतीके जबरदस्त काममें जुटा हुआ हूँ। अपने कामके सिलसिलेमें मुझे लगातार रेल-यात्रा करनी पड़ती है। एकान्त और आरामके लिए मैं तरसता रहता हूँ। लेकिन ये शायद मुझे कभी नहीं मिलेंगे। श्रीमती गांधीमें अद्भुत परिवर्तन हुआ है। जिन चीजोंपर उन्हें आपत्ति हुआ करती थी, अब उन्होंने उन चीजोंको बड़े सुन्दर ढंगसे स्वीकार कर लिया है। किन्तु इन सब बातोंका वर्णन मैं नहीं करूँगा। तुम्हें यहाँ आकर प्रत्यक्ष देखना चाहिए।

सस्नेह,

तुम्हारा,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
 

३०९. पत्र: देवदास गांधीको

[नडियाद]
जून २३, १९१८

देखता हूँ, तुमने शिक्षण-कार्यका आरम्भ ठीक तरहसे किया है। मैंने कल कुछ सुझाव भेजे हैं। व्याकरण जल्दी सिखाना। उसमें उन्हें रस आयेगा; इसमें सबसे पहले शब्दोंके रूप सिखाना ठीक रहेगा। उनकी तुलना तमिल शब्दोंके रूपोंसे करनी चाहिए। विद्यार्थियोंकी आयु और विद्याभ्यासमें प्रगतिकी कुछ कल्पना मुझे देना।

यहाँ सैनिक-भरतीकी अपीलकी पहली पत्रिका प्रकाशित[१] कर दी गई है। इसकी तीन प्रतियाँ भेजता हूँ। इसका अंग्रेजी अनुवाद भी कर लिया गया है। इसे पढ़कर जो विचार मनमें आयें, सूचित करना। मैं आजकल अहिंसा-धर्मको कुछ भिन्न, किन्तु भव्य रूपमें देख रहा हूँ। साथ ही अपनी संयमकी कमियोंका दर्शन भी करता जा रहा हूँ। इस कार्यके लिए मेरी तपस्या बहुत ही अपर्याप्त है। पहले तपस्यासे जो अनुभव-ज्ञान मिलता था, आज प्रयोगसे उसका करोड़वाँ भाग भी नहीं मिल सकता। चाहे कितने ही जल-बिन्दुओंका विश्लेषण करें, उनमें दो भाग हाइड्रोजन और एक भाग आक्सीजन ही निकलेगी। तिसपर भी निश्चयपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि पानी उन्हींका संश्लेषण है। यह अनुमान-ज्ञान है। परन्तु यदि मैं दो भाग हाइड्रोजन और एक भाग आक्सीजनका मिश्रण करके पानी बनाऊँ, तो यह निश्चित ज्ञान हुआ। यह अनुभव-ज्ञान है। पानी भले ही दूसरी तरह बन सकता हो, परन्तु एक ही प्रयोगसे मैंने निश्चयपूर्वक बता दिया कि उपर्युक्त गैसोंके मिश्रणसे तो पानी बनता

  1. देखिए “सैनिक-भरतीकी अपील”, २२-६-१९१८।