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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही है। बहुतसे कार्य हम अनुमानसे करते हैं और कोई हानि नहीं होती। किन्तु महान् कार्यों में अनुमानसे हानि और अनुभवसे लाभ देखा जा सकता है। इसीलिए यमादिके पालनकी जरूरत है। अनुभव-ज्ञान प्राप्त करनेके लिए यह एकमात्र सीढ़ी है।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

३१०. पत्र: मोहनदास नागजीको

पुनर्विवाहके बारेमें मेरी राय यह है कि पतिका पत्नीके गुजर जानेपर और पत्नीका पतिके गुजर जानेपर दुबारा विवाह न करना जरूरी है। संयम हिन्दू-धर्मका आधार है। यों तो संयमका विधान सभी धर्मोमें है। परन्तु हिन्दू-धर्ममें उसे बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। ऐसे धर्ममें पुनर्विवाह तो अपवादस्वरूप ही होने चाहिए। मेरे विचार ऐसे होनेपर भी जबतक बाल-विवाह होते हैं और पुरुष इच्छानुसार चाहे जितनी बार विवाह करते हैं, तबतक यदि कोई बाल-विधवा पुनर्विवाह करना चाहे तो उसे रोकनेका प्रयत्न नहीं किया जाना चाहिए और उसकी इच्छाका आदर किया जाना चाहिए। मैं बिलकुल बाल-विधवाके मनमें भी पुनर्विवाह करनेकी इच्छाका बीज नहीं डालूँगा, किन्तु अगर वह पुनर्विवाह करेगी तो में उसके कार्यको पाप नहीं गिनूँगा।

मोहनदास गांधी के आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

३११. पत्र: विट्ठलभाई पटेलको

[नडियाद]
जून २३, १९१८

भाईश्री विट्ठलभाई,

आपका पत्र मिला। मेरे खयालसे आप जैसोंका होमरूल लीगसे बाहर रहकर यथाशक्ति सेवा करना ठीक है। इस समय होमरूल लीगकी स्थिति विषम है। उसकी स्थिति बाहरी झगड़ोंके कारण विषम नहीं है, बल्कि उसकी भीतरी झंझटें बहुत हैं। वह तय नहीं कर सकी है कि कौन-सा रास्ता अपनाया जाये―तंग करनेका या मदद देनेका! उसने तंग तो बहुत किया, अब उससे निवृत्त होकर उसे कुछ रचनात्मक काम