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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री तिलकने “परन्तु” से आरम्भ किया, उसे आपत्तिजनक मानकर गवर्नरने उन्हें इस वाक्यको पूरा नहीं करने दिया और आगे बोलनेसे रोक दिया। किसी अन्य अवसरपर गवर्नरने ऐसा किया होता तो यह नहीं कहा जा सकता कि उन्हें ऐसा करनेका हक नहीं है। लेकिन जिसे उन्होंने वहाँ बोलनेके लिए स्वयं बुलाया था, उस अतिथिको इस तरहसे रोकना उन्हें शोभा नहीं देता था और ऐसा करके उन्होंने श्री तिलकका तथा अन्य सम्मानित अतिथियोंका और समस्त भारतीय लोगोंका भारी अपमान किया है। श्री तिलक असाधारण व्यक्ति हैं। समस्त भारत उनकी पूजा करता है। उन्हें इस प्रकार बैठा देना सचमुच असह्य है। आज हम सब यहाँ यह दिखाने के लिए इकट्ठे हुए हैं कि यह बात अहमदाबादके लोगोंके लिए भी असह्य है। और बम्बईके लोगोंने जो कदम उठाया है वे उसका समर्थन करते हैं। ऐसा करके हम अपना फर्ज पूरा करते हैं और यह सिद्ध करते हैं कि हम सच्चे स्वराज्यवादी हैं। स्वराज्यका एक अंग ऐसा होना चाहिए कि यदि भारतका अपमान हो तो उसे भारतीय स्वराज्यका अपमान समझ- कर चला जाये। आज हम भारतीय स्वराज्यके इस अपमानके कारण गवर्नरसे जवाब तलब करने के लिए एकत्रित हुए हैं। हमें उनसे कह देना चाहिए कि आपने हमारा भारी अपमान किया है इसके लिए आपको खेद प्रकट करना चाहिए। थोड़ेसे अपवादोंको छोड़कर भारत में एक भी समाचारपत्र ऐसा नहीं है जिसने गवर्नरके इस कार्यको पसन्द किया हो। सबने उनके इस कार्यकी निन्दा की है। ‘पायनियर’ ने भी इसकी निन्दा की है और लिखा है कि ऐसे समयमें, जब लोगोंको साथ लेकर काम करनेकी आवश्यकता है, ऐसी घटना नहीं होनी चाहिए थी। इतना ही नहीं, उसने गवर्नरको [क्षमायाचनाका] कड़वा घूँट पीकर काम करनेकी सलाह दी है। अहमदाबादकी सभाके उद्देश्य और स्वीकृत प्रस्ताव उचित हैं। एक प्रस्तावमें कहा गया है कि गवर्नर अपने इस कार्यपर खेद प्रकट करें और यदि वे ऐसा न करें तो वाइसराय बीचमें पड़कर गवर्नरके कार्य से अपनी असहमति प्रकट करें। यदि ऐसा नहीं किया जायेगा तो होमरूल- लीगके सदस्य लॉर्ड विलिंग्डनकी अध्यक्षतामें की गई किसी भी सभामें भाग नहीं लेंगे। हम न तो लॉर्ड विलिंग्डनके प्रति अपनी अप्रसन्नताको साम्राज्यपर थोपना चाहते हैं और न अपने वर्तमान कर्त्तव्यसे पीछे हटना चाहते हैं। दूसरे प्रस्तावमें हमें सरकारको सहायता देने में जिन कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता है, उनका उल्लेख किया गया है। इसके द्वारा हम उससे यह कहना चाहते हैं कि, हम सरकारको जितनी सहायता देना चाहते हैं, उतनी नहीं दे पाते, क्योंकि उसके लिए जो-कुछ करने की जरूरत होती है उसकी सत्ता आपके हाथ में है। आप शिक्षित-वर्गका अपमान नहीं कर सकेंगे और भारतीय सैनिक अंग्रेज सैनिकोंकी अपेक्षा कम अधिकारोंसे सन्तुष्ट नहीं होंगे, यह कहकर हम अपनी कठिनाइयाँ पेश करते हैं और कहते हैं कि हम आपकी मदद नहीं कर सके इसका कारण भी आप ही हैं। आप इन कारणोंको दूर कर दें, तो आपपर हमने जो आरोप लगाये हैं हम उन्हें वापस ले लेंगे। लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है। कुछ कार्य हमें करने ही चाहिए। यदि हम ऐसा न करेंगे तो माना जायेगा कि स्वराज्यवादीके रूपमें हम अपने कर्त्तव्यसे चूक गये हैं। हम भगवान्से प्रार्थना करते हैं कि “हे प्रभु! आज ही स्वराज्य दो”, लेकिन प्रभु कहते हैं कि “वह तुम्हें तुम्हारी योग्यताके अनुरूप मिलेगा।” यदि ईश्वर हमें माँगने से