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भाषण: अहमदाबादमें

स्वराज्य दे दें तो संसारमें उथल-पुथल हो जाये। हमें स्वराज्यके लिए अपनी योग्यता सिद्ध करनी पड़ेगी। हमारे पास शत्रुको उत्तर देनेके अनेक साधन हैं, लेकिन अपनी त्रुटियोंको सही रूपमें देखना हमारा कर्त्तव्य है। यदि हम सरकारसे चिढ़कर उसके दोषोंपर विचार करते हुए हाथपर-हाथ धरे बैठे रहेंगे तो हम स्वराज्य नहीं प्राप्त कर सकेंगे। भारत में यात्रा करके मैंने यह जाना है कि भारतीय प्रजा सरकारसे कैनेडा और आस्ट्रेलियाके लोगोंकी तरह समान अधिकार-भोगी नागरिकोंका-सा सम्बन्ध रखना चाहती है। हम चाहते हैं कि सरकार हमसे युद्धके सम्बन्धमें सलाह करे और तभी धन और जनकी माँग करे। यदि हम स्वराज्यका त्याग नहीं करना चाहते तो अंग्रेजोंके साथ साझीदारके रूपमें काम करनेमें हमारा फायदा है। हमारा प्रथम और अन्तिम कर्त्तव्य यह है कि हम साम्राज्यके त्यागमें भाग लें और बेधड़क अपनी आहुति दें। उससे ही हम शीघ्र स्वराज्य प्राप्त कर सकेंगे। हम अत्याचारके विरुद्ध खड़े हों और उन्हें दूर करानेके लिए आवश्यक कदम उठायें; इसके अलावा हम मौजूदा समयमें सरकारका साथ दें―हमारे ये दो कर्तव्य हैं और यदि हमने अपने इन कर्त्तव्योंको पूरा किया तो हम उनके प्रति अपनी सचाई सिद्ध कर सकेंगे। यदि हम अपने ऊपर लगाये गये आरोपोंको दूर करना चाहते हों तो हमें साम्राज्यके प्रति अपनी निष्ठा प्रकट करने के लिए सन्देहका कारण ही नहीं रहने देना चाहिए। इसकी असली सजा यही है। अब हम इस प्रस्तावके दूसरे पहलूपर भी विचार करें। मुझे श्री तिलकका एक पत्र मिला है। उसमें उन्होंने लिखा है, यदि भारत सरकार भारतीय सैनिकोंका दरजा अंग्रेज सैनिकोंके समान कर दे तो हम छः महीनेमें ५,००० मनुष्योंको देनेके लिए तैयार हैं और यदि हम इतने मनुष्य न दे सके तो एक-एक मनुष्यके लिए सौ-सौ रुपया जुर्माना देनेके लिए तैयार हैं और इसके लिए उन्होंने ५०,००० रुपयेकी रकम जमा करवा कर जमाकी रसीद भी भेजी है। इस विषयमें मेरी बातचीत श्री जिन्ना और श्रीमती बेसेंटसे भी हुई है। उन्होंने स्वीकार किया है कि हमें साम्राज्यको आवश्यकतानुसार आदमी देने चाहिए। श्री तिलकको विश्वास [१] है, यदि हम पक्की शर्तें करके सरकारको सहायता देंगे तो उसमें विश्वासघातके लिए कोई अवकाश नहीं रहेगा। इसी उद्देश्यको दृष्टिमें रखकर वैसा करना चाहिए। लेकिन मेरी मान्यता यह है कि विश्वास रखकरके हम कुछ भी नहीं खोते। इसलिए मैं बिना किसी हिचकके लोगोंको सलाह देता हूँ कि वे सेनामें भरती हों। इस तरीकेसे हम अपनी इच्छित वस्तु पा सकेंगे। मैं श्रद्धावान् हूँ, इसलिए हमें श्रद्धा रखकर काम करना चाहिए, यही मेरी सलाह है। मैं यह कहने आया हूँ कि स्वराज्य मन्त्रकी सिद्धि के लिए आपको अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए। गुजरातके माथेपर जो कलंक है उसे दूर करनेके लिए आपको सैनिक बनना चाहिए। अहमदाबादपर धावा हो तो उसका बचाव करनेके

 
  1. श्री तिलक सरकारके साथ यह समझौता करना चाहते थे कि वे भारतीय सैनिकोंको सेनामें कमीशन प्राप्त अधिकारी नियुक्त करेगी; यदि सरकारने ऐसा आश्वासन दिया तो वे इस सेनामें ५,००० लोगोंके नाम लिखायेंगे और उन्होंने ५०,००० रुपयेका चेक दिया कि यदि वे इस कार्य में असफल रहें तो उनका वह चेक जब्त कर लिया जाये। गांधीजी ऐसा सौदा करनेको तैयार नहीं थे, इसलिए उन्होंने श्री तिलकको वह चेक लौटा दिया।