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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय


इन तीनों वक्ताओंकी वक्तृत्व शक्ति उनके अंग्रेजीके ज्ञानके कारण नहीं, बल्कि उनके स्वभाषा प्रेमके कारण आई है। स्वामी दयानन्दने[१] हिन्दी भाषाकी जो सेवाएँ की है वे अंग्रेजी ज्ञानके कारण नहीं की। तुकाराम[२] और रामदासने[३] मराठी भाषाको जिस तरह उज्ज्वल बनाया है, उसमें अंग्रेजी भाषाका कोई हाथ नहीं है। प्रेमानन्द[४], शामल भट्ट[५] और आधुनिक युगमें दलपतरामने[६] गुजराती साहित्यको समृद्ध किया है; अंग्रेजी भाषाका इसमें कोई हाथ नहीं है।

ऊपरके उदाहरणोंसे यह साबित होता है कि मातृभाषाके विकासके लिए अंग्रेजी भाषाकी जानकारीकी नहीं, मातृभाषाके प्रेमकी—उसके प्रति श्रद्धाकी—जरूरत है।

भाषाओंके विकासपर विचार करें तो भी हम इसी निर्णयपर पहुँचेंगे। भाषाएँ उनके बोलनेवाले लोगोंके चरित्रका प्रतिबिम्ब होती हैं। दक्षिण आफ्रिकाके हब्शियोंकी भाषा जाननेसे हम उनके रीति-रिवाज वगैरा जान सकते हैं। भाषा जातियोंके गुण-कर्मके अनुरूप बनती है। यह बात हम निःसंकोच कह सकते हैं कि जिस भाषामें वीरता, सच्चाई, दया आदि लक्षण नहीं होते उस भाषाको बोलनेवाली जातियोंमें वीर, सत्यशील और दयालु लोग नहीं होते। ऐसी भाषामें दूसरी भाषाओंसे जैसे-तैसे वीरता या दया-सूचक शब्द ठूँस देनेसे न उस भाषाका विस्तार हो सकता है, न उस भाषाके बोलनेवाले लोग वीर ही बनेंगे। शौर्य किसीमें भी बाहरसे नहीं भरा जा सकता। हाँ, वह भीतर हो और उसपर जंग लग गया हो, तो जंगके हटते ही वह चमक उठेगा। हमने बहुत समय तक गुलामी भोगी है, इसलिए हममें विनयकी अतिशयता सूचित करनेवाले शब्दोंका बड़ा भण्डार दिखाई देता है। अंग्रेजी भाषामें नौकाके लिए जितने शब्द हैं, उतने और किसी भाषामें शायद ही हों। यदि कोई साहसपूर्वक उन पुस्तकोंका अनुवाद गुजरातीमें करे भी तो उससे न हमारी भाषाका कोई विकास होगा और न हम नौकाओंके बारेमें ही ज्यादा जानने लगेंगे। अलबत्ता जब हम जहाज बगैरा बनाना सीखेंगे और जलसेना भी खड़ी करेंगे, नौका-सम्बन्धी पारिभाषिक शब्द तब अपने-आप बन जायेंगे। यह विचार स्वर्गीय रेवरेंड टेलरने अपने व्याकरणमें व्यक्त किया है। वे लिखते हैं :

कभी-कभी यह विवाद सुनाई पड़ता है कि गुजराती भाषा पूर्ण है या अपूर्ण। कहावत है कि 'यथा राजा तथा प्रजा, यथा गुरुस्तथा शिष्यः।' इसी तरह कहते हैं कि 'यथा भाषकस्तथा भाषा—अर्थात् जैसा बोलनेवाला वैसी भाषा। शामल भट्ट और अन्य कवि अपने मनके विचार प्रकट करते समय यह सोचकर कभी रुके नहीं जान पड़ते कि गुजराती भाषा अधूरी है। उन्होंने नये और पुराने
 
  1. स्वामी दयानन्द सरस्वती (१८२४-८३); आर्य समाजके संस्थापक।
  2. महाराष्ट्रके सन्त कवि।
  3. १६३६-१७२८; गुजराती कवि।
  4. १७००-६५; गुजराती कवि, इनकी कविताके एक पदका गांधीजीपर उनके बचपनमें ही बहुत प्रभाव पड़ा था। देखिए आत्मकथा, भाग १ अध्याय १०।
  5. दलपतराम डाह्याभाई त्रिवेदी (१८२०-१८९२)।