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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बीतेगी? आपके पुण्य-प्रतापसे, आपके शुभ्र सतीत्वके प्रभावसे युद्धस्थलमें वे सभी प्रकारसे सुरक्षित रहेंगे। यदि वे युद्धमें वीरगतिको भी प्राप्त हो जायें तो यह विचारकर धैर्य धारण करें कि उन्होंने अपना कर्त्तव्य पूरा करने में अपनी देहको अर्पण किया है। याद रहे कि अगले जन्म में वे प्रिय स्वजन फिर आपको प्राप्त होंगे।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २-७-१९१८
 

३१४. भाषण: खेड़ामें[१]

जून २७, १९१८

हम साधारणतः जेल जानेको बदनामीकी बात मानते हैं। कैदी जेलमें घबराता रहता है और दिन गिनता रहता है, कि सजा कब पूरी हो और कब बाहर निकलूँ? देश और समाजके नियमोंको भंग करनेवाले अपराधीकी ऐसी मनःस्थिति होती है। यह मन:-स्थिति सत्याग्रहीकी मनःस्थितिसे भिन्न होती है। हम आत्मसम्मान और अधिकारोंके इस संघर्ष में जेल जानेकी हिमायत करते हैं। जो भाई आज जेलसे छूटकर आये हैं उनकी मुखाकृतिपर विषाद अथवा ग्लानिकी छाया भी नहीं है। खेड़ाके सभी लोग उन्हें गर्वपूर्ण दृष्टिसे देखते हैं और उनके सम्मानमें उत्सव कर रहे हैं। जेल जाना एकके लिए बदनामीकी बात है; दूसरेके लिए गौरवकी। पहले प्रकारके लोग जेलसे कठोर होकर निकलते हैं। वे वहाँ ठगी और उत्पात करते हैं; जब कि हमारे इन भाइयोंने जेलको अपने पदार्पणसे पवित्र किया है। उन्होंने जेलके नियमोंका पालन किया है, इतना ही नहीं, बल्कि उन्हें जेलमें शान्तिपूर्वक विचार करनेका जो समय मिला उसका सदुपयोग करके उन्होंने चाय और बीड़ी छोड़नेका व्रत लिया तथा आजीवन देश-सेवा करनेका प्रण किया। वे जेलमें रहते हुए, निरन्तर इसी बातका ध्यान करते रहे कि वे देशके लिए क्या करें। इस प्रकार, उन्होंने अपने इन बीस दिनोंके जेल-वासका अपूर्व उपयोग किया है। यही कारण है कि जेल जाना हमारे लिए बदनामीकी बात नहीं; बल्कि गौरवकी बात है। भाइयो और बहनो! आप सब यही प्रार्थना करें कि ऐसी जेल तो हम सबको मिले, जिससे हम सब देशकी शुद्ध सेवा कर सकें।

जेलमें रहते हुए इन भाइयोंमें इतना परिवर्तन हुआ इसका कारण मोहनलाल पंड्या हैं। यदि लोगोंमें एक व्यक्ति भी सच्चा हो तो वह कितना काम कर सकता है और दूसरोंपर कितना प्रभाव डाल सकता है, वह उनके जीवनसे जाना जा सकता है।

 
  1. यह सभा जेलसे सजा भुगतकर आये हुए उन सत्याग्रहियोंके स्वागतार्थ की गई थी जो भूमिकर न देनेपर सरकार द्वारा जन्त खेतों में से प्याज उठा लानेके अभियोगमें दण्डित किये गये थे। देखिए “भाषण: नडियाद में”, ८-६-१९१८। एक समाचारपत्रकी रिपोर्ट के अनुसार गांधीजी इन सत्याग्रहियोंको लानेके लिए महमदाबादसे खेड़ा पैदल गये थे।