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भाषण: खेड़ामें

मैं अन्य भाइयोंका श्रेय कुछ कम नहीं करना चाहता; लेकिन इतनी बात तो निश्चित है कि यदि जेलमें पंड्या न होते तो इस जेल-यात्राका इतना शुभ परिणाम न निकलता।

जेल जानेमें ही सत्याग्रहकी पूर्णता नहीं हो जाती; किन्तु कुछ अंशोंमें वह सत्याग्रहकी नींव अवश्य है। सत्याग्रह करके जेल जाने और अपराध करके जेल जानेमें सूक्ष्म अंतर है।

उदाहरणके तौरपर यदि कोई व्यक्ति लगान न दे और फिर किसीपर हमला करे तथा जेलमें जाये तो उसका यह कार्य सत्याग्रह नहीं है। यहाँ आक्रमण करना और जेल जाना दोनों ही बदनामीके काम हैं। फिर भी यदि किसीको आक्रमण करनेपर सच्चा पश्चात्ताप हो और वह जेल जाये तो उसका वह कार्य प्रायश्चित्त कहलायेगा; लेकिन उसे सत्याग्रह तो अवश्य ही नहीं कहा जा सकता।

इन भाइयोंके जेलसे छूटकर आनेके अवसरपर आज हम सत्याग्रह के स्वरूपपर विचार करते हैं। जो व्यक्ति सोच-समझकर और मरजीसे अपने ऊपर दुःख ले लेता है वह सत्याग्रही कहलाता है। जो न्याय-सिद्धान्त दो भाइयोंपर लागू होता है वही सरकार और जनतापर भी लागू होता है। सत्याग्रही समाजको सदा प्रसन्न नहीं रख सकता; उसे अनेक बार समाजको अप्रसन्न भी करना पड़ता है और समाजके विरुद्ध भी सत्याग्रह करना पड़ता है। हम चाहते हैं कि सत्याग्रहका सिद्धान्त भारत में जल्दीसे-जल्दी फैले। भारतका छोटा भाग, छोटेसे-छोटा भाग भी यदि सत्याग्रहको अंगीकार करे तो अनेक महान् कार्य सिद्ध हो सकते हैं। यहाँ उपस्थित लोगोंमें से बहुत-से लोग स्वराज्यके हिमायती हैं। उन्हें एक क्षणके लिए भी सत्य न छोड़ना चाहिए। यदि वे सत्यसे चूकेंगे तो उन्हें घोर अन्धकारसे गुजरना पड़ेगा। उन्हें सूर्यनारायणके दर्शन नहीं होंगे। सत्याग्रहीका कर्त्तव्य यह है कि वह देशके सामने निर्भयतापूर्वक सत्य-सिद्धान्तको रखे। ऐसा करते हुए वह जगत्की सेवा करेगा।

भाइयो और बहनो, मैं कहता हूँ कि यदि हम सत्याग्रहकी पूजा सच्चे दिलसे करना जानते हैं तो हमारा एकमात्र धर्म यही है कि हम मृत्युपर्यन्त सत्यका पालन करते रहें। यदि हमें लगता हो कि सत्यका पालन करते रहनेसे देशका अहित नहीं होगा तो हमें परमात्माको साक्षी मानकर निश्चय करना चाहिए कि चाहे पृथ्वी रसातलको चली जाये तो भी हम सत्यको नहीं छोड़ेंगे। तभी आप सच्चे स्वराज्यवादी होंगे और तभी आप स्वराज्यके सच्चे पदक लगा सकेंगे।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह