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३१५. भाषण: नवागाँवमें[१]

जून २७, १९१८

आज जेलसे निकलकर, आप भाइयों और बहनोंके सामने जिस व्यक्तिको खड़ा होना था वह व्यक्ति तो मैं था, क्योंकि खेतमें से प्याज खोदनेकी सलाह मैंने दी थी। मैंने ही उनसे कहा था कि तुम सब निधड़क होकर प्याज खोदो, इसलिए वे प्याज खोदने में जुट गये। सरकारने उनको रोका; इससे भी उसे सन्तोष नहीं हुआ और उसने उनमें से छः भाइयोंको जेल भेज दिया। जिसे जेल भेजा जाना चाहिए था, सरकारने उसे जेल नहीं भंजा; इसलिए यशके भागी ये भाई हुए। इस अवसरपर हम सब उत्सव मनाने और इन्हें बधाई देनेके लिए गाँव-गाँवसे यहाँ इकट्ठे हुए हैं।

आज नवागाँवकी कीर्ति सारे गुजरातमें फैल गई है। नवागाँवके भाइयोंने जेल जाकर सत्याग्रह के सिद्धान्तपर पूरा-पूरा अमल किया है। बहनें भी समझ गई हैं कि हमने अपराध नहीं किया है, इसलिए जेल जानेमें कोई नामूसी नहीं है। मेरी कामना है कि यह उत्साह समस्त खेड़ा जिलेमें फैल जाये।

हमने लगानकी लड़ाई लड़ी; लेकिन जेल जाना बाकी रह गया था। उसका अवसर भी ईश्वरकी कृपासे मिल गया। इनकी मुखाकृतियोंसे ऐसा नहीं जान पड़ता कि इन्हें जेलमें कोई दुःख भोगना पड़ा होगा। दुःख और सुख मनपर निर्भर हैं। मन जिसे सुख माने वह सुख है और जिसे दुःख माने वह दुःख। हमारे भाइयोंने जेल जानेमें सुख माना था, क्योंकि उन्हें यह विश्वास हो गया था कि अपनी टेककी खातिर और अपने देशकी खातिर जेल जाना चाहिए; और इसी कारण उन्होंने जेल जानेका स्वागत किया। उन्होंने जेलको महल माना और वहाँ संयम-साधना की। इसी तरह आप लोग भी जेल जानेका स्वागत करें, वहाँ जाकर संयम साधें और व्रत लें।

सत्याग्रह-धर्म अति दुःसाध्य है, लेकिन जिस हदतक हम उसका पालन करेंगे उस हदतक हममें मनुष्यत्व आयेगा।

यदि कोई व्यक्ति इस अवसरसे शिक्षा लेकर देशके लिए जीने, काम करने और मरनेका व्रत लेगा तो यह दिन शुभ माना जायेगा। हमारी आनेवाली पीढ़ियाँ भी इसे शुभ मानकर इस दिन उत्सव मनाया करेंगी।

यदि मोहनलाल पंड्या न होते तो आप जितना कर पाये हैं उतना न कर पाते। हम कामना करते हैं कि नवागाँवके भाइयों और बहनोंमें मोहनलाल पंड्याकी तरह हिम्मत आये, जिससे बाहरी सहायताकी आवश्यकता न रहे। पंड्याके अनुभवका लाभ नवागाँवको

 
  1. खेड़ामें जिन जेल-मुक्त सत्याग्रहियोंका स्वागत किया गया था वे ही जुलूस बनाकर उनके गाँव नवागाँवमें ले जाये गये थे।