पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/४७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४१
भाषण: कठलालमें

मिला और जिस यशको प्राप्त करके अन्य कोई गाँव भाग्यशाली बनता वह यश भी नवागाँवको मिला। मेरी कामना है कि आप इस यशका सदा सदुपयोग करें।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह
 

३१६. भाषण: कठलालमें[१]

जून २८, १९१८

मैं देखता हूँ, कुछ लोगोंको यह विश्वास हो गया है कि भारतमें ज्यों-ज्यों दिन बीतते जाते हैं त्यों-त्यों मानों में गुरु होनेका दावा करता जाता हूँ। जो चेतावनी मैंने दक्षिण आफ्रिकामें दी थी, वही मैं यहाँ भी देता हूँ। मैं जानता हूँ कि ऐसी चेतावनीसे भी सम्मान प्राप्त होता है। इस जोखिमके बावजूद, मैं कहूँगा कि मैं किसीका गुरु बन ही नहीं सकता। मैं किसीका गुरु बननेके योग्य नहीं हूँ। आजके समान पवित्र अवसर दक्षिण आफ्रिकामें भी आया था। तब भी मैंने इस पदको लेनेसे इनकार कर दिया था और आज भी इनकार करता हूँ। मैं स्वयं किसी धर्म-गुरुकी तलाश में हूँ। जो व्यक्ति स्वयं किसी धर्म-गुरुकी तलाशमें हो वह दूसरोंका गुरु किस तरह बन सकता है? मेरे राजनैतिक गुरु श्री गोखले थे; लेकिन मैं किसीका राजनैतिक गुरु नहीं बन सकता, क्योंकि मैं राजनैतिक मामलोंमें अभी बच्चा हूँ। दूसरी बात यह है कि यदि मैं गुरु-पद स्वीकार करके किसी व्यक्तिको दीक्षा दूँ और वह मेरे विचारोंके अनुरूप कार्य न करे अथवा भाग जाये तो उससे मुझे दुःख होगा।

मुझे लगता है कि जो व्यक्ति यह कहे, मैं अमुकका शिष्य बन गया हूँ उसे ऐसा कहते समय एकबार नहीं, बल्कि अनेक बार विचार करना चाहिए। जो गुरुका कोई भी आदेश होते ही उसे तत्क्षण वेतन-भोगी सेवकके समान पूरा कर दे, वही शिष्य कहला सकता है। वह वेतन-भोगी सेवकके समान है या नहीं, इसकी कसौटी तभी होती है जब वह उस आदर्शका पूरा पालन करे। अबतक मैंने जो कार्य किये उनसे मैं लोगोंकी निगाहमें आया। वे लोगोंको पसन्द आने योग्य कार्य थे। यदि मैंने इस संघर्ष में कोई दक्षता दिखाई है तो वह इतनी ही है कि मैंने जनताकी अभिरुचि किस ओर है, यह देखकर उसे सही रास्तेपर चलानेकी कोशिश की है; इसीलिए उसका परिणाम शुभ निकला।

मैं सत्याग्रही बनने का प्रयत्न कर रहा हूँ। यह बात नहीं है कि सत्याग्रही सदा लोकमतके अनुसार ही व्यवहार करता है। उसके सामने लोकमतके विरुद्ध लड़नेका समय भी आता है। सत्याग्रहमें असत्य हो ही नहीं सकता। उसमें चाहे जो व्यक्ति भाग ले सकता है। हम सबका जीवन प्रयोगोंसे बना है। यदि हम प्रयोग करते रहेंगे तो उनमें से हमें कुछ-न-कुछ मिलता ही रहेगा। घासके साथ कूड़ा-करकट आता है और गेहूँके साथ भूसी होती

  1. यह भाषण मोहनलाल पंड्या को मानपत्र देने के लिए आयोजित एक सभामें दिया गया था।