पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/४७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। इसी तरह प्रत्येक प्रवृत्तिमें से हमें दो वस्तुएँ मिलती हैं। जैसे हम गेहूँका उपयोग करते हुए भूसीका त्याग करते हैं वैसे ही जीवनमें भी हमें सत्यको ग्रहण कर असत्यका त्याग करना चाहिए। मुझे बहुत काम करने हैं, उनको मैं आप लोगोंको भाई और बहन मानकर ही पूरा करना चाहता हूँ। आपकी इच्छा हो तो आप मुझे अपना बड़ा भाई मान सकते हैं। मुझे इसीसे प्रसन्नता मिल जायेगी। मैं अपने आपको इसी श्रेणीमें रखता हूँ।

मोहनलाल पंड्या और जेलसे लौटे हुए अन्य भाइयोंके सम्बन्धमें जो-कुछ कहा गया है वह सही है। जेलके भयसे हमारी आँखोंमें आँसू भर आते हैं। इसके बजाय ये भाई प्रसन्न-मुखसे जेल गये, प्रसन्नतासे जेलमें रहे और प्रसन्न ही जेलसे आये। इस कारण, इस अवसरपर हम उन्हें जितनी बधाई दें, उतनी कम है। मोहनलाल पंड्याने इसी संघर्ष में सत्याग्रहका अभ्यास आरम्भ किया और संघर्षके अन्तमें सत्याग्रहकी ऊँची परीक्षा पास कर गये। इनको सम्मान देकर आपने अपना ही सम्मान किया है।

इस सत्याग्रहके फलस्वरूप यदि कठलालकी दशामें परिवर्तन हुआ, और भविष्यमें कठलालमें अनेक सुन्दर कार्य हुए तभी यह समझा जायेगा कि आप सत्याग्रहका अर्थ समझ गये। आज जो वस्तु हमारे हाथ लगी है, वह रत्न-चिन्तामणि है। यदि हम उसे सँभालकर रखेंगे तो वह हमेशा हमें कल्पलताके समान वांछित फल देती रहेगी।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह
 

३१७. पत्रका अंश[१]

[नडियाद]
जून २९, १९१८

मुझे भी यह लड़का[२] निर्दोष नहीं जान पड़ता। आप मुझे खुश रखना चाहें तो ऐसा प्रयत्न करें कि इसे अदालतसे न्याय प्राप्त हो।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 
  1. पत्र किसको भेजा गया है इसका पता साधन-सूत्रमें नहीं दिया गया है।
  2. हरिलाल, गांधीजीके सबसे बड़े पुत्र; लगता है इनकी सट्टेबाजीसे किसी व्यक्तिको व्यापारमें हानि पहुँची थी।