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३१८. भाषण: नडियादमें[१]

जून २९, १९१८

हमारी कुछ-एक बहनोंने सत्याग्रहका जो पाठ पढ़ाया है, पहले तो मैं यहाँ उसीकी ओर आपका ध्यान खींचता हूँ। हमें कितनी ही बहनोंके दर्शन नहीं होते; क्योंकि वे परदेमें रहती हैं। मैं इन बहनों और इन भाइयोंसे भी जो उन्हें परदमें रखनेके लिए उत्तरदायी हैं, कहता हूँ कि हम अपने आधे शरीरके कुचले जानेकी स्थिति भारतका कार्य नहीं कर सकते। जिन बहनोंने यहाँ परदेमें बैठनेकी व्यवस्थाका अनादर करके स्वतन्त्रतापूर्वक बाहर खुली हवामें बैठना पसन्द किया है इसके लिए हमें उन्हें बधाई देनी चाहिए।

आपने मुझे जो मानपत्र भेंट किया है उसके लिए में आपका आभारी हूँ। लेकिन जिस व्यक्तिने सेवाधर्मका वरण किया है, वह किसी भी सम्मानको स्वीकार नहीं कर सकता। वह तो अपना सर्वस्व कृष्णार्पण कर चुका होता है। इसलिए जो सम्मान मुझे मिलता है, उसे कृष्णार्पण ही किया जा सकता है। सेवाधर्मी सम्मानका भूखा नहीं हो सकता। जिस क्षण वह सम्मानका भूखा हो जाता है उसी क्षण वह सेवाधर्मसे भ्रष्ट हो जाता है। मैंने अनेक बार देखा है कि कितने ही लोग पैसेके लिए काम करते हैं, कितने ही सम्मानके लिए और कितने ही कीर्तिके लिए। पैसेकी भूख बुरी मानी जाती है; लेकिन सम्मानकी भूख पैसेकी भूखसे कहीं अधिक बुरी है। मनुष्य पैसेके लिए जितनी दुष्टता करता है उससे अधिक दुष्टता कितनी ही बार मान-सम्मानके लिए करता है। आत्म-सम्मानकी रक्षा करना एक बात है और सरकार अथवा जनतासे सम्मान प्राप्त करनेकी इच्छा करना दूसरी बात। सम्मानका भूखा आदमी अपना ही नहीं, बल्कि जनता का भी भारी नुकसान करता है। सम्मान ऐसी चीज है कि वह बड़े-बड़े लोगोंको भी भुलावेमें डाल देता है। यदि आप अपना आत्म-सम्मान बनाये रखना चाहते हैं तो मैं आपसे विनयपूर्वक प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे मानपत्र भेंट न करें। मुझे सम्मान देनेका सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप मेरी सलाह मानें; इतना ही नहीं बल्कि उसे अच्छी तरह समझकर क्रियान्वित करें। तभी यह कहा जा सकेगा कि आपने मुझे सच्चा मान दिया है।...[२]

सेनापतिकी चतुराई अपने कार्यकारी-मण्डलका चुनाव करनेमें ही है। किन्हीं आदर्शोंके स्थिर कर लिये जानेपर और कोई खास नियम बना लिये जानेपर सेना उनके आधारपर चलती जाये, तभी काम हो सकता है। यदि सेना उनपर न चले तो अकेला सेनापति कोई बड़ा काम नहीं कर सकता...।[२] मैंने कोई महान् कार्य सम्पन्न

नहीं किया है...।[२] बहुतसे लोग मेरी सलाह मानने के लिए तैयार थे...।[२] मैंने विचार किया कि उपसेनापति कौन होगा ? तब मेरी नजर वल्लभभाईपर पड़ी। मुझे

  1. यह भाषण सत्याग्रह-संघर्ष सफल होनेपर गांधीजीने मानपत्रके उत्तरमें दिया था।
  2. २.० २.१ २.२ २.३ यहाँ मूलमें कुछ शब्द नहीं हैं।,