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भाषण : द्वितीय गुजरात शिक्षा सम्मेलनमें

शब्दोंका उपयोग इस प्रकार विवेकपूर्वक किया कि उनके द्वारा व्यवहृत शब्द भाषामें प्रचलित हो गये।

एक विषयमें तो सभी भाषाएँ अधूरी हैं। मनुष्यकी छोटी बुद्धिमें न आनेवाली बातों, जैसे ईश्वर या अनन्तताके बारेमें कहें तो सभी भाषाएँ अधूरी हैं। भाषा मनुष्यकी बुद्धिके सहारे चलती है, इसलिए जब किसी विषय तक बुद्धि नहीं पहुँचती, तब भाषा अधूरी रह जाती है। भाषाका साधारण नियम यह है कि लोगोंके मनमें जो विचार भर जाते हैं, वे ही उनकी भाषामें व्यक्त होते हैं। लोग विवेकशील होंगे तो उनकी बोलीमें विवेकशीलता होगी, लोग मूढ़ होंगे तो उनकी बोली में भी मूढ़ता होगी। अंग्रेजीमें कहावत है कि "मूर्ख बढ़ई अपने औजारोंको दोष देता है।" भाषाको अपूर्ण बतानेवाले लोग भी कम-ज्यादा ऐसे ही समझिए। जिस विद्यार्थीको कुछ अंग्रेजी भाषा आ गई है और उसके साथ कुछ पाश्चात्य विषय भी आ गये हैं, उसे गुजराती भाषा अधूरी-सी लगती होगी, क्योंकि उसका अंग्रेजीसे अनुवाद करना मुश्किल होता है। इसमें दोष भाषाका नहीं, लोगोंका है। चूँकि लोगोंको विवेकपूर्वक समझनेका प्रयत्न करनेका अभ्यास नहीं होता, इसलिए विशेषज्ञ नया विषय नई पारिभाषिक शब्दावली अथवा नई भाषा-शैलीमें रखते हुए झिझक जाता है; वह सोचता है, कौन "अंधेके आगे रोये, अपने नैन खोये।" जबतक लोग भला-बुरा, नया-पुराना परखकर उसकी कीमत नहीं आँक सकते, तबतक लिखनेको प्रतिभा भी कैसे चमक सकती है?

जो लोग अंग्रेजीसे भाषामें अनुवाद करते हैं, वे कुछ ऐसा समझते हैं कि अपनी भाषाका ज्ञान तो उनकी घुट्टीमें ही उन्हें मिला है और अंग्रेजी उन्होंने पढ़ी ही है; इसलिए अब वे दो भाषाओंके पूरे पण्डित हो गये। भला अब वे गुजरातीका अध्ययन किसलिए करें? परभाषाका ज्ञान प्राप्त करने में श्रम करनेकी अपेक्षा स्वभाषामें प्रवीणता प्राप्त करने के निमित्त अध्ययन करना अधिक महत्त्वपूर्ण है। शामल और अन्य गुजराती कवियोंके ग्रन्थ देखिए। उनमें प्रत्येक पदमें अध्ययनका प्रमाण मिलता है। जबतक मनसे प्रयत्न न करेंगे तबतक गुजराती कच्ची ही रहेगी; परिश्रमसे बादमें पक्की होगी। प्रयत्न करनेवालेका प्रयत्न अधूरा होगा, तो उसकी भाषा भी अधूरी होगी, लेकिन यदि प्रयत्न पूरा होगा, तो गुजराती भी पूरी होगी। इतना ही नहीं वह सजी हुई भी दिखाई देगी। गुजराती आर्यकुलकी, संस्कृतकी बेटी और बहुत ही उत्कृष्ट भाषाओंकी सगी ठहरी। उसे कोई निम्नकोटिकी कैसे बता सकता है?

परमात्मा इसे आशीर्वाद दे। अनन्तकाल तक इसकी वाणीमें सद्विद्या, सद्ज्ञान और सद्धर्मका सुबोध रहे और सिरजनहार प्रभु करें, हम माताओं और छात्रोंसे सदा-सर्वदा उसका गुणगान सुनें।

इस तरह हम देखते हैं कि बंगालमें सारी शिक्षा बँगलाके जरिये देनेके आन्दोलनकी असफलताका कारण भाषाकी अपूर्णता या प्रयत्नकी अयोग्यता नहीं है। अपूर्णताके बारेमें