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३२२. पत्र: देवदास गांधीको

[नडियाद]
जुलाई २, १९१८

[चि० देवदास,]

तुम्हारे पत्र बहुत नियमित आते हैं, इससे मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। मैं नियम पालना चाहता हूँ, परन्तु तुम मेरे पत्रोंकी राह हमेशा न देखना। तुम्हारा पत्र आज नहीं आया। श्री नटेसनके सम्बन्धमें जो बात लिखी वह दिलचस्प है। तुम्हें जैसा अनुकूल लगे, वैसा करो। जिस काम में तुम इस समय लगे हो, वह कितना महत्त्वपूर्ण है, शायद अभी तुम्हें इसकी कल्पना भी नहीं हो सकती। साधारणतः ऐसे कामोंमें बहुत चतुर और वृद्ध पुरुषको ही नियुक्त किया जाता है। ऐसा करनेपर भी यह सवाल रहता है कि मद्रास-जैसी जगहमें काफी लोग पढ़ने आयेंगे या नहीं। यदि तुम मद्रास प्रदेशको हिन्दी-दान कर सको और लोग उसे स्वीकार कर लें, तो एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न हल हो जाता है। तब यह कहा जा सकता है कि तुमने मद्रासका भारतके दूसरे भागोंसे संगम करा दिया। गंगापर पुल बनाने में जितने कौशल और धैर्यकी जरूरत है, जिस पुलको तुम बना रहे हो, उसमें उससे ज्यादाकी जरूरत है। तुम हिन्दीको सरल और दिलचस्प बनाओ। इसमें तुम्हारी चतुराईका उपयोग हो जायेगा। इसके लिए तुम्हें

फुरसतके समय हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी और तमिल आदि भाषाओंके व्याकरण पढ़ लेने चाहिए। इससे तुम्हें कोई ऐसा सरल मार्ग मिल जायेगा, जिससे तुम लोगोंको थोड़े प्रयत्न से अधिक सिखा सकोगे। धातुओंसे बने शब्द खूब सिखा देने चाहिए। इससे स्मरण-शक्ति-पर बोझ कम पड़ता है। वहाँ हिन्दीभाषियोंको तमिल पढ़ने के लिए भेजना है। मैंने तुम्हें इसकी व्यवस्था के सम्बन्ध में विचार करनेके लिए लिखा था। इस बारेमें श्री नटेसन, हनुमन्तराव और अन्य लोगोंसे बातें। रेवाशंकर सोढ़ा और छोटम आश्रममें लौट आये हैं। यद्यपि मेरी जिम्मेदारी बढ़ी है, फिर भी मुझे इससे प्रसन्नता हुई है। हरिलाल राजकोटसे आते हुए आज रातकी गाड़ीमें यहाँसे निकलेगा।...[१] की माँके गुजर जानेका समाचार मिला है। तुम उसे पत्र लिखना। इस घटनापर मैंने कल आश्रममें बहुत पवित्र चर्चा की। चर्चाको में पवित्र इसलिए कहता हूँ कि सबने बड़े विवेक और धर्म-वृत्तिसे सत्य उत्तर दिये। प्रश्न यह था: अब...[१] माँ की मृत्युपर शोक मनाते जाना चाहेगा। इसमें ८०) रुपये खर्च होंगे। क्या आश्रम इस खर्चको उठा सकता है? क्या आश्रमको यह खर्च उठाना चाहिए? जिसने देशके लिए फकीरी ले ली है, जिसने सेवा-धर्म अंगीकार किया है, उसकी माँ मरती ही नहीं; क्योंकि जितनी स्त्रियाँ उसकी माँ बनने लायक हैं, वे सब उसकी माँ हैं। उसका बाप भी नहीं मरता, क्योंकि सभी बड़े-बूढ़े उसके बापके समान हैं। सेवा उसकी स्त्री है। वह तो मर ही कैसे सकती है? और बाकी सब लोग उसके भाई-बहन हैं। माँके लिए शोक मनाने जाना केवल रूढ़ि है। क्या उसका पालन करनेके

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