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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए, दुनियाके सामने झुकनेके लिए नाहक रुपया खर्च किया जाये? इस प्रश्नकी चर्चा की गई। सबने शान्त भावसे उत्तर दिया कि इसपर खर्च हरगिज नहीं किया जा सकता। सन्तोक और बा भी मौजूद थीं। फिर भी सबने तय किया कि इस बार यह नियम लागू न किया जाये।...[१] और...[१] बहनकी मरजीपर छोड़ दिया जाये। बहुत करके वे जायेंगे।

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बापूके आशीर्वाद

[गुजराती से]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

३२३. पत्र: डॉ० प्राणजीवन मेहताको

[नडियाद]
जुलाई २, १९१८

भाईश्री प्राणजीवन,

कुछ दिनोंसे आपको पत्र नहीं लिख पाया हूँ। मुझे जो रुपया यहाँ मिल जाता है उसीसे काम चलाता हूँ। माँगने नहीं जाता। इस समय मुझे रुपयेकी बड़ी जरूरत है। मकान बनाने का काम हो रहा है; मैं इसमें चालीस हजार रुपये खर्च कर चुका हूँ। अभी अवश्य ही साठ हजार रुपये और खर्च होंगे। कमसे-कम डेढ़ सौ आदमियोंकी गुंजाइश करनी है और बीस करघे लगाने हैं। कपड़ा बुनाईका काम बहुत बढ़ता जा रहा है। अहमदाबादकी हड़तालके बाद मैं बहुत-से जुलाहोंके सम्पर्कमें आया हूँ। लगभग तीन सौ स्त्रियाँ चरखा चलाने लग गई हैं। मेरा खयाल है कि थोड़े अर्सेमें हाथका कता दो मन सूत रोज मिलेगा। ये स्त्रियाँ बेकार थीं। इन्हें अब धन्धा मिल गया है। बाहरके तीस-एक जुलाहे भी काम करने लगे हैं। इनमें कुछ ढेढ़ हैं। ये मजदूरी करते थे; अब स्वतन्त्र धन्धा कर रहे हैं। मैं इस कामको बहुत महत्त्वपूर्ण समझता हूँ। इसके लिए भी मुझे अधिक रुपया चाहिए। मेरा अनुमान है कि इसमें मुझे दस हजार रुपये लगाने होंगे। राष्ट्रीय पाठशालाका काम भी उतना ही जरूरी लगता है। मुझे महसूस होता है कि इस समय भी पाठशालाके लड़के उन्हीं श्रेणियोंके दूसरी जगहके लड़कोंसे अच्छे हैं। उनमें निर्भयता आदि जो गुण आ गये हैं, उन्हें तो सभी साफ-साफ देख सकते हैं। मेरा खयाल है कि इस पाठशालापर हर महीने एक हजार रुपये खर्च होंगे। अभी तो खर्च कम है। दोनों कामोंमें में खुद लगूँ, तो बेशक उन्हें बहुत बढ़ा दूँ। किन्तु ऐसा कर नहीं पाता। फिर भी मैं देखता हूँ कि दोनों काम अच्छे चल रहे हैं। आपसे में अभी बड़ी रकम माँग रहा हूँ और स्थायी व्यवस्था यह चाहता हूँ कि अन्यत्रसे रुपया