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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पुण्योंको भी मेरे बराबर कोई नहीं जानता। जिसे शस्त्र-विद्या सीखनी है, जिसे मारना सीखना है, उसे मैं हिंसा करना भी सिखाऊँगा। यदि मैं इस समय कुछ न कर सकूँ, तो आप इसे मेरी तपस्याकी कमी जानें। जिसे मारे बिना मरना न आता हो, उसे मारकर मरना सीखना चाहिए।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

३२६. पत्र: एनी बेसेंटको

[नडियाद]
जुलाई ४, १९१८

[प्रिय श्रीमती बेसेंट,]

बिना शर्त फौजी भरतीके पक्षमें आपका जोरदार समर्थन पढ़नेके लिए मैं ‘न्यू इंडिया’ के पन्ने पलटता हूँ और निराश होकर रह जाता हूँ। इतना तो आपको साफ तौरपर अवश्य ही महसूस हुआ होगा कि अगर हरएक ‘होमरूल लीगी’ सक्रिय भरती करनेवाला बन जाये, तो जिन परिवर्तनोंपर हम सहमत हों, केवल उन्हीं परिवर्तनोंके साथ हम कांग्रेस-लीग योजना जरूर पास करा सकते हैं। मेरे खयालसे यह ऐसा समय है, जब हमें लोगोंका मार्गदर्शन करना चाहिए। उनकी रायकी प्रतीक्षामें बैठे न रहना चाहिए। मैं आपका वही पुराना जोश देखना चाहता हूँ जो विरोधके सामने और भी जोरदार बन जाता है। अगर हम रंगरूट जुटा देंगे, तो अपनी शर्तें मनवा सकेंगे। किन्तु अगर हम सरकारकी शर्तोंका इन्तजार करते रहे, तो मुमकिन है तबतक लड़ाई खत्म हो जाये, हिन्दुस्तान सच्ची सैनिक शिक्षासे वंचित रह जाये और हमपर सैनिक तानाशाही लद जाये। परिस्थितिपर इस प्रकार विचार करना अत्यन्त स्वार्थपूर्ण है, किन्तु हमारा स्वार्थ बताता है कि देशके सामने मैंने जो रास्ता प्रस्तुत करनेका साहस किया है, वही एकमात्र अक्सीर उपाय है।

मैं जानता हूँ कि आप मेरे पत्रको धृष्टतापूर्ण नहीं समझेंगी।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई