३२७. पत्र: मु० अ० जिन्नाको
[नडियाद]
जुलाई ४, १९१८
मेरी हार्दिक इच्छा है कि फौजी भरतीके मामलेमें आप एक जोरदार वक्तव्य दें। क्या आप भी ऐसा नहीं मानते कि अगर प्रत्येक ‘होमरूल-लीगी’ सैनिक-भरती करनेवाला शक्तिशाली एजेंट बन जाये और उसके साथ ही वैधानिक हकोंके लिए लड़ता रहे, तो हम कांग्रेस-लीग योजना को (यदि कोई परिवर्तन हुए तो) सिर्फ उन परिवर्तनोंके साथ, जिनपर हम सहमत हों, निश्चित रूपसे पास करा सकते हैं। हमारी आवाजका प्रभाव तब कहीं ज्यादा होगा। “पहले आप सैनिक-भरतीका दफ्तर खोजिए, बादमें आपको सब-कुछ मिल जायेगा।” हमें जनताको नेतृत्व देना चाहिए इसका खयाल नहीं करना चाहिए कि लोग हमारी सलाहको किस रूपमें लेंगे। मैं आपसे जोरदार वक्तव्यकी आशा रखता हूँ, अगर-मगर वाले वक्तव्यकी नहीं।
मैं जानता हूँ कि आप मेरे पत्रका बुरा नहीं मानेंगे।
हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी
- महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
- सौजन्य: नारायण देसाई
३२८. पत्र: सी० एस० रंगा अय्यरको
[नडियाद]
जुलाई ४, १९१८
आपकी बधाईके लिए आभारी हूँ।[२] आप देहातमें बहुत-सी सभाएँ न कर सके, मैं इस बातको अन्यथा नहीं समझूँगा।[३] मैं जानता हूँ कि यह चीज कितनी मुश्किल है। फिर भी देहातमें प्रवेश किये बिना हमारी ‘होमरूल’ की योजनाएँ किसी कामकी नहीं हैं। आम जनताका समर्थन प्राप्त कर सकें, तो हम अपने ध्येयकी तरफ बेरोक-टोक