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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कूच कर सकेंगे। यह हमारी आँखोंके सामने होनेवाले दुखान्त नाटककी सबसे करुण घटना है कि हम इतनी सीधी-सादी बात भी नहीं समझते। इस चक्रसे आपको बच निकलना हो, तो अपने पत्रके बन्द हो जानेका खतरा उठाकर भी आपको हिन्दी सीख लेनी चाहिए और फिर ग्रामवासियोंके बीच रहकर काम करना चाहिए। मैं जानता हूँ कि आपने अपने पत्रके लिए बड़ी मेहनत की है। किन्तु मैं उस परिश्रमको लगभग व्यर्थ किया गया परिश्रम समझता हूँ। हमने पश्चिमकी जो शिक्षा प्राप्त की है, उसके सुफल हमें करोड़ों देशवासियोंको देने चाहिए। परन्तु हम लोग तो अपने ही बीच विचारोंका आदान-प्रदान किया करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे आँखोंपर पट्टी बँधे कोल्हूके बैल उसी चक्करमें घूमते हुए भी यह मानते हैं कि वे प्रगति कर रहे हैं।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
 

३२९. पत्र: प्रभुदास गांधीको

[नडियाद
जुलाई ४, १९१८]

चि० प्रभुदास,

तुम्हारा पत्र मैंने बहुत ध्यान और दिलचस्पीसे पढ़ा है। उसे लिखनेमें तुमने बड़ी समझदारीसे काम लिया है। उसमें अविनय तनिक भी नहीं है। उसकी भाषा विनययुक्त और स्वतन्त्रताकी भावनासे भूषित है। इसलिए मुझे बड़ी मीठी लगती है। तुम्हारे पत्रसे तुम्हारी निर्भयता प्रकट होती है।...[१]

मुझे कुछ बातोंकी जानकारी नहीं थी। उनके सिवा तुमने जो-कुछ लिखा है। उसका भी आभास-मात्र था। तुमने उसे अधिक स्पष्ट कर दिया है। मेरा ज्ञान इतना नहीं था कि मैं कोई उपाय कर सकूँ। तुम्हारी दी हुई जानकारीसे में इस बारेमें कोई उपाय कर सकूँगा।...[१]

मेरे धोखा खानेसे जैसे तुम्हारे चरित्र या शिक्षणको कोई धक्का नहीं लगा वैसे ही हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचता। यदि हम एक ऊँचे आदर्शपर कायम रहें, तो कोई हानि नहीं होती। जो आदमी अपना घर साफ रखता है, उसके घरमें प्लेग वगैरा रोग घुस ही नहीं सकते। फिर यदि वे घुस भी आयें, तो वहाँ स्थायी रूपसे निवास नहीं कर सकते। इसी तरह यदि हम खुद साफ रहें, तो दुष्टता रूपी प्लेग