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पत्र: जी० ए० नटेसनको

हमारे घरमें घुस आनेपर भी लम्बे समय तक नहीं रह सकती। तुमने देखा होगा कि मेरे सम्पर्कमें आनेवाले सभी लोगोंके दोष आगे-पीछे सामने आ ही गये हैं।

मैं तुमसे तुम्हारे पत्रको सम्बद्ध व्यक्तियोंको पढ़वा देनेकी अनुमति चाहता हूँ। वे तुमपर रोष न करेंगे, रोष किया ही नहीं जा सकता। हम आश्रममें ऐसा चाहते हैं कि तुम्हारे और दूसरे लोगोंके मनमें जो विचार हों, उन्हें तुम लोग जाहिर करो। हो सका तो मैं आश्रममें दो रात रुक जाऊँगा और दूसरे दिन सुबहकी गाड़ीसे वापस आ जाऊँगा, ताकि हमें रातका समय मिल सके।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

३३०. पत्र: जी० ए० नटेसनको

नडियाद
जुलाई ५, १९१८

प्रिय श्री नटेसन,

देवदासको आपके हाथों नर्सका प्रेम और शुश्रूषा मिल रही है। मुझे खेद है कि आपके अनेक बोझोंमें एक और बढ़ गया। मैंने आशा रखी थी कि देवदास बीमार पड़नेकी असभ्यता नहीं करेगा। देवदासकी देखभाल करनेके लिए कृपया डॉ० कृष्णास्वामीको मेरी ओरसे धन्यवाद दे दें। आपकी खातिर मैं आशा करता हूँ कि वह जल्दी अच्छा हो जायेगा। आपकी माताजीको जो आपत्ति है, उसे मैं समझ सकता हूँ। परन्तु आप दृढ़ रहेंगे, तो वे देवदासके मामलेमें अपनी आपत्ति हटा लेंगी और यह चीज भविष्यके लिए उदाहरण बन जायेगी। आप जानते ही हैं कि नायकरके मामलेमें उन्होंने कितनी शालीनतासे काम लिया था। उन्हें अपने साथ ले चल सकनेकी क्षमतामें आपको स्वयं सन्देह था। अपने घरसे ही सुधार शुरू करनेका विचार न करनेकी हम सुधारकोंको आदत पड़ गई है। अब अपनेको सुधारनेमें हमें कठिनाई पड़ती है। परन्तु आभार व्यक्त करनेके लिए लिखा गया यह पत्र तो उपदेशात्मक हो गया। इस अपराधके लिए क्षमा करें।

मैं जानता हूँ कि यदि देवदासकी हालत चिन्ताजनक हुई तो आप तार दे देंगे।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० २२३०) की फोटो-नकल से।