पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/४८८

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३३१. पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

[नडियाद]
जुलाई ५, १९१८

आपने ‘क्रॉनिकल’ में कौन-सी रिपोर्ट पढ़ी, यह मैं नहीं जानता। रंगरूट भरती करनेवाला एक सरकारी अफसर है; उसकी धृष्टता देखिए कि वह मेरा हमनाम है। आपने जो उत्साहपूर्ण रिपोर्ट पढ़ी, वह उसी की होगी। मुझे तो अभी तक एक भी रंगरूट नहीं मिला, सिवा मेरे कुछ साथियोंके जो सैनिकके रूपमें काम करनको या अपनी एवजमें दूसरे रंगरूट देनेके लिए वचनबद्ध हैं। काम बहुत ही कठिन है। अपनी जिन्दगी में इतना मुश्किल काम हाथमें लेनेका मौका मुझे पहले कभी नहीं आया। फिर भी किसी परिणामके बारेमें अभीसे कुछ कहना बहुत जल्दी होगा।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नाराण देसाई
 

३३२. पत्र : देवदास गांधीको

[नडियाद]
जुलाई ५, १९१८

मैं चिन्तामें पड़ गया हूँ। तुम यह तो जानते ही हो कि हमारा नियम क्या है। हमें बीमार हरगिज न पड़ना चाहिए। हम बीमार न हों, इसके लिए हमें संयमकी ही जरूरत है। काफी कसरत और जितनी आवश्यक है, केवल उतनी ही खूराक―इन दो बातोंका ध्यान रखा जाये, तो तन्दुरुस्ती हरगिज नहीं बिगड़ेगी।

[गुजरातीसे]
महावेवभाईनी डायरी, खण्ड ४