पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/४८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

३३३. पत्र: मणिभाई पटेलको

[नडियाद]
जुलाई ५, १९१८

भाईश्री मणिभाई,[१]

आपका पत्र मिला। मैं आपकी भावना समझ सकता हूँ; परन्तु सहायता नहीं कर सकता। समय अपना काम कर रहा है। वह आपको शान्ति देगा।

[आपका,]

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

३३४. पत्र: सी० एफ० एण्ड्रयूजको

[नडियाद]
जुलाई ६, १९१८

प्रिय चार्ली,

तुम्हारे सभी पत्र मिल गये।[२] इन्हें मैं बहुत कीमती मानता हूँ, यद्यपि उनसे मुझे बहुत थोड़ा आश्वासन मिलता है। तुमने जो कठिनाइयाँ बताई हैं, मेरी कठिनाइयाँ उससे अधिक बड़ी हैं। जो कठिनाइयाँ तुमने उपस्थित की हैं, उनका जवाब तो मैं दे सकता हूँ। इस पत्र में अपनी कठिनाइयोंको शब्दबद्ध करनेका प्रयत्न करूँगा। फिलहाल इस समय इन कठिनाइयोंने मेरा सारा ध्यान अपनी ओर खींच रखा है। दूसरे जो भी काम मैं करता दिखाई देता हूँ, वे केवल यान्त्रिक रूपमें करता हूँ। बहुत ज्यादा सोचनेका असर मेरे शरीरपर भी पड़ा है। किसीके साथ बात करना मुझे अच्छा नहीं लगता। मुझे कुछ लिखना भी अच्छा नहीं लगता, यहाँतक कि अपने मनके ये विचार भी नहीं। इसीलिए मैं यह पत्र बोलकर लिखा रहा हूँ ताकि देखूँ कि अपने विचार स्पष्टतासे प्रकट कर सकता हूँ या नहीं।[३] सच तो यह है कि मैं अपनी कठिनाइयोंकी तहतक नहीं पहुँच सका हूँ। तब फिर उन्हें हल करनेका तो प्रश्न ही नहीं उठता। उनके हल होनेसे मेरे तात्कालिक कार्यपर कोई असर नहीं होगा। भविष्यकी कुछ नहीं कह सकता। अगर मैं और जीता रहा, तो किसी भी तरह इस भेदका पता अवश्य चलाऊँगा।

  1. रावजीभाई पटेलके पिता।
  2. इनमें जून २३ का पत्र भी शामिल रहा होगा। देखिए “पत्र: सी० एफ० एन्ड्यूजको”, २३-६-१९१८ से पूर्व की पाद-टिप्पणी।
  3. इसके लिए गांधीजीने महादेवभाईकी सहायता ली।