पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/५०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नया विचार भली-भाँति समझ जाओ। इसमें पतन नहीं, बल्कि उन्नति है। अपनी इस खोजके कारण मेरे मनमें प्रेमकी जो भावना पैदा हुई है, वह पहले से अनन्त गुनी है।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई

३४५. पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको[१]

[नडियाद]
जुलाई १७, १९१८

प्रिय श्री शास्त्रियर,

आपके बम्बई जा सकनेसे मैं बहुत प्रसन्न हुआ। मेरे खयालसे यदि आप कांग्रेस [अधिवेशन] में[२] शामिल हो सकें तो बहुत बड़ा काम करेंगे। मुझे स्वीकार करना चाहिए कि पण्डितजीका रवैया जैसा अखबारोंमें बताया गया है, वैसा हो, तो मेरी उनके साथ सहानुभूति है। उनके लिए कांग्रेसके मंचसे अनुपस्थित रहना उनके जीवनका एक अत्यन्त साहसपूर्ण कार्य होगा। मुझे जो लगता है वह यह है कि मैं उस सभामें कैसे उपस्थित रहूँ, जिसमें, मैं जानता हूँ, गलत नेतृत्व दिया जानेवाला है, और प्रस्तावों को पेश करनेवाले प्रमुख लोग जिनमें उनका विश्वास नहीं है वह बात कहते हैं और जिन प्रस्तावोंके पक्षमें वे मत देंगे बादमें उन्हीं प्रस्तावोंकी खुद ही समाचारपत्रों में निन्दा करेंगे? में जानता हूँ कि इस प्रश्नका दूसरा पहलू भी है, किन्तु इस क्षण तो मैं अलग रहनेकी तरफ ही झुकता हूँ। आशा है आपकी तबीयत अच्छी होगी।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
  1. गांधीजीने यह पत्र श्री शास्त्रीके निम्न-पत्रके उत्तर में भेजा था: “समाचारपत्रों में बिल्कुल विपरीत बात लिखनेके बाद अब श्रीमती बेसेंट और तिलकको वह रुख अपनाते देखकर आश्चर्य होता है जो आपके और मेरे रुखसे मिलता-जुलता है। कांग्रेसमें दिलचस्पी न लेनेकी जो बातें की जा रही है, उन्हें मैं पसन्द नहीं करता। मैं इस बातको समझ ही नहीं पाता।”
  2. अगस्त २९ से सितम्बर १ तक बम्बई में होनेवाले कांग्रेसके विशेष अधिवेशनमें मॉण्टेग्यु-चैम्सफोर्ड सुधार-योजना को लेकर फूट पड़ जानेकी आशंका की जा रही थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कांग्रेसने जो प्रस्ताव पास किया उसका सर्वत्र स्वागत किया गया।