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३४६. पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

[नडियाद]
जुलाई १८, १९१८

आपने लिखा है कि मैं आपको अभी हालमें प्रकाशित सुधार-योजनाके [१] सम्बन्ध में अपने विचार बताऊँ। आप जानते ही हैं कि मुझे कांग्रेस और मुस्लिम लीगकी योजना तैयार करनेमें सक्रिय भाग लेनेकी जरूरत नहीं लगी थी। मैंने राजनीतिक विवादमें पूरी दिलचस्पी नहीं ली है। मैं इन सुधार-प्रस्तावोंका अध्ययन जिस ढंगसे एक राजनीतिज्ञ करता उस ढंगसे उनका अध्ययन करनेका दावा अभी तक नहीं कर पाऊँगा। इसलिए मैं उनके सम्बन्धमें अपनी सम्मति देते हुए बहुत अधिक झिझकता रहा हूँ। फिर भी मैं उनके बारेमें मेरी जो राय बनी है उसे व्यक्त करनेके पक्षमें आपके तर्कको महत्त्वपूर्ण समझता हूँ।

मेरी राय तो यह है कि जो योजना अभी हालमें प्रकाशित हुई है वह बहुत अच्छी बन पाई है और इस दृष्टिसे कांग्रेस-लीग योजनासे अच्छी है। मेरा यह भी खयाल है कि श्री मॉण्टेग्यु तथा लॉर्ड चैम्सफोर्ड दोनों ही सच्चे दिलसे भारतका कल्याण चाहते हैं। और २० अगस्तकी घोषणापर उचित अमल करना चाहते हैं। उन्होंने अपने अत्यन्त कठिन और नाजुक कामको पूरा करनेके लिए बहुत परिश्रम किया है और मेरे मनमें इसके सिवा और कोई खयाल आ ही नहीं सकता कि जल्दबाजीमें उनकी इस योजनाको अस्वीकृत कर देना देशके लिए अहितकर होगा। मेरी विनम्र सम्मतिमें इस योजनाको एकदम नामंजूर कर देनेकी अपेक्षा उसके सम्बन्धमें सहानुभूतिसे विचार किया जाना चाहिए। परन्तु उसमें पहले बहुत-कुछ संशोधन करनेकी जरूरत है; सुधार-वादियोंको वह तभी मंजूर होगी। आखिर, कांग्रेस-लीग योजनाको ही हम अपना मापदंड मान सकते हैं फिर वह भले ही अनगढ़ क्यों न हो। मेरा खयाल है कि हम जिन तत्त्त्वोंको आवश्यक समझते हैं उन्हें उस योजनामें शामिल करानेके लिए हमें अपनी पूरी शक्ति और बुद्धि लगानी चाहिए।

उदाहरणार्थ में किन्हीं खास वर्गोंके लिए स्थान सुरक्षित करनेके सिद्धान्तको नहीं मानता। मुझे बहुत अंदेशा है कि यह प्रयोग प्रान्तोंके दुहरे शासनसे असफल हो जायेगा। चूँकि इस प्रयोगकी सफलताके पश्चात् ही हम आगेकी मंजिलपर―आशा है कि वही अंतिम मंजिल होगी पहुँच सकते हैं, इसलिए हम इस बातको लेकर अड़ नहीं सकते कि संरक्षणोंके विचारको योजनामें से निकाल दिया जाये। यह बात सभीके ध्यानमें आयेगी कि दुर्भाग्यसे विशुद्ध भारतीय हितोंसे पृथक विशुद्ध ब्रिटिश हितोंके सम्बन्धमें हमारी

 
  1. वैधानिक सुधारोंपर ई० एस० मॉण्टेग्यु और लॉर्ड चैम्सफोर्ड द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट जो ८ जुलाई, १९१८ को प्रकाशित की गई थी। श्री शास्त्रिवरने अपने समाचारपत्र सर्वेंट ऑफ इंडिया में प्रकाशित करनेके लिए उस योजनापर गांधीजीके विचार माँगे थे।