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पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

सरकारी योजनाके सम्बन्धमें मेरा दृष्टिकोण बताता है। जहाँतक इस सवालका ताल्लुक है वहाँतक यह मेरी सुविचारित सम्मति है; परन्तु मैं सम्राट्की सरकारके पास जिन सुधारोंका सुझाव भेजना चाहता हूँ वे सभी इसमें नहीं आ जाते। मेरा खयाल है कि हम सब यथासमय इस योजनाका विवेचन संस्थाकी ओरसे करेंगे; इसलिए इस सम्बन्ध में मैं विस्तृत विचार कर भी सकूँ तो उसकी जरूरत नहीं जान पड़ती।

अन्तमें मैं अपनी यह बात बताए बिना खत्म नहीं कर सकता कि मेरी समझमें हम लोगोंके सामने अपनी सम्मति मनवानेका―फिर वह सम्मति अन्ततोगत्वा कैसी भी हो―सबसे अच्छा मार्ग कौन-सा है। इस ऐतिहासिक अभिलेखके अन्तिम भागमें कहा गया है कि हजारों सुधारवादी भारतीय इस योजनाको बड़ी उत्सुकतासे पढ़ रहे हैं―इस कथनसे मैं पूर्णतया सहमत हूँ। “एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मामलेमें जिस उत्तरदायित्वकी भावनासे ये सिफारिशें की जाती हैं, उत्तरदायित्वकी वह भावना यह जानकर और भी बढ़ जाती है कि जब यह रिपोर्ट लिखी जा रही है तब भी फ्रांसकी रण- भूमिमें इससे भी बहुत अधिक महत्त्वके प्रश्नोंका निर्णय करना अभीतक शेष है। भारतके भविष्यका निर्णय, दिल्ली या ह्वाइट हॉलमें नहीं, वहीं किया जायेगा।” ईश्वर हम स्वराज्यवादियोंको यह सीधा-सादा सत्य समझ सकनेकी बुद्धि दे! हमारी स्वतन्त्रताका प्रवेश-द्वार फांसकी युद्धभूमिमें है। रक्त बहाये बिना आजतक किसीको कभी कोई उल्लेखनीय विजय नहीं मिली। यदि हम इतना करें कि स्वराज्यवादियोंकी एक अपराजेय सेनासे, जो मित्रराष्ट्रोंके उद्देश्यकी जीतके लिए लड़े, फ्रांसकी रणभूमिको पाट दें तो यह लड़ाई हमारे उद्देश्यकी भी लड़ाई होगी। तब हम सुदूर भविष्यमें या निकट भविष्यमें ही नहीं, बल्कि तत्काल भारतके स्वराज्य-प्राप्तिके अधिकारको सिद्ध करेंगे। इसलिए देशवासियोंको मेरी यही सलाह है; बिना किसी शर्तके, अंग्रेजोंके साथ मिलकर विजयके लिए मृत्युपर्यन्त लड़ो और साथ ही अगर आवश्यक हो तो राजनैतिक सुधारोंके लिए मृत्युपर्यन्त आन्दोलन करो। नौकरशाहीकी प्रबलतम विरोधी शक्तियोंपर विजय पानेका यही अच्छा, सीधा मार्ग है और निश्चित विजयके अन्तमें इसमें कोई दुर्भाव न रहेगा।

केवल अड़ंगा-नीतिको अपनाकर और विध्वंसक आंदोलनसे उद्देश्यको प्राप्त करना असम्भव नहीं है, यह माना जा सकता है; परन्तु यह बात शीघ्र ही समझमें आ जायेगी कि यदि उन तरीकोंको काममें लाया जाये, तो अंग्रेजों और भारतीयोंके बीच दुर्भाव पैदा हो जायेगा और वह बात भावी साझेदारोंको मिलानेमें किसी खास योजक तत्त्वका काम नहीं करेगी।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, २४-७-१९१८