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सैनिक-भरतीकी अपील

लिखें। वे आपको मेरे इस प्रकार लिखनेका अभिप्राय समझा देंगे। मैं चाहता हूँ कि आप आश्रममें रहें। लेकिन मैं यह भी चाहता हूँ कि आप ऐसा वातावरण होनेपर ही आयें कि फिर आश्रमसे कभी न जायें।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र ( जी० एन० ३६१७) की फोटो-नकलसे।

 

३५२. भाषण: नडियादमें[१]

जुलाई १८, १९१८

गांधीजीने बताया कि किस प्रकार पिछले दो सौ वर्षोंमें बीमारियोंसे गुजरातके लोगोंमें सैनिक-भावना क्षीण पड़ गई है और इस बातपर जोर दिया कि भरतीका काम शुरू करने से पहले यह जरूरी है कि वे इस तथ्यको समझ लें। उन्होंने कहा कि मैं अपने मार्गकी कठिनाइयोंको पूरी तरह समझता हूँ; परन्तु मैंने उनको पार करनेका निश्चय कर लिया है, क्योंकि जिस दिनसे दिल्ली सम्मेलन हुआ है, उसी दिनसे मैंने यह मान लिया है कि इस समय प्रत्येक भारतीय देशभक्तका सबसे पहला कर्त्तव्य फौजी भरतीमें मदद करनेका है। मेरे पास भारतके अनेक भागोंसे इस आशयके पत्र आये हैं कि मैं वहाँ जाकर उन लोगोंके फौजी भरती अभियानमें सहायता दूँ। परन्तु जबतक मेरे गुजराती भाई ही आनाकानी करते हों तबतक में निःसंकोच भावसे वहाँ नहीं जा सकता।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २२-७-१९१८

३५३. सैनिक-भरतीकी अपील

नडियाद
जुलाई २२, १९१८

पत्रिका―२

पहली पत्रिका लिखे हुए आज एक महीना हो गया। इस बीच मुझे और मेरे साथ काम करनेवाले भाइयोंको बहुत-सा अनुभव हुआ है। नडियाद, करमसद, रास, कठलाल और जम्बूसर वगैरा जगहोंपर सभाएँ की गईं। सैकड़ों स्त्री-पुरुषोंसे बातचीत हुई।

जो अनुभव हुआ, उसे मैं आपके सामने रखनेकी इजाजत चाहता हूँ। मुश्किलसे सौ आदमी भरती हुए होंगे। एक मासके समय और जो प्रवास किया है, उसका जब खयाल

  1. जिस सभामें गांधीजीने अपने विचार व्यक्त किये थे उस सभाकी अध्यक्षता उत्तरी क्षेत्रके कमिश्नर एफ० जी० प्रैटने की थी। उसमें जिले-भरके अधिकारी और प्रमुख गैर-सरकारी लोग भी शामिल हुए थे।