प्रतिज्ञा आप और हम सबने ली है, उसी प्रतिज्ञाके लिए लड़ाईमें भाग न लेनेकी बात करना मैं तो स्वराज्यका द्रोह मानता हूँ।
सेनामें भरती होनेकी शर्त तय करानेके फेरमें हमारा भरती होने और स्वराज्यकी योजनाके भी स्थगित हो जानेका खतरा है। सेनामें भरती होने में ही स्वराज्यकी और हमारे देशकी सुरक्षा है। यह तो सभी दल मंजूर करते हैं कि सेनामें भरती होनेसे स्वराज्यको धक्का हरगिज नहीं पहुँचेगा । इसलिए मैं यह मानता हूँ कि तुलनात्मक दृष्टिसे भी तीनों बातों में से फौजमें शरीक होना ही अच्छा माना जायेगा। मुझे उम्मीद है कि खेड़ा जिलेके भाई अपना फर्ज अदा करेंगे और अपना नाम स्वयंसेवकोंमें लिखा देंगे या सीधे आश्रममें भेज देंगे।
मुझे उम्मीद है कि बहनें भी इस काममें सहायता देंगी। मैं जानता हूँ कि कुछ बहनें अपने पतियों और पुत्रोंको जानेसे रोकती हैं। वे गहराईमें जाकर विचार करेंगी, तो समझ जायेंगी कि उनके पतियों या पुत्रोंके वीर पुरुष बनने में उनका हित है, देशका हित तो है ही।
आपका चिरसेवक,
मोहनदास करमचन्द गांधी
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
३५४. पत्र: एस्थर फैरिंगको
बम्बई
जुलाई २२, १९१८
मैं इस संकल्प-विकल्पमें पड़ा हूँ कि तुम्हें पत्र लिखूं या न लिखूँ। तुम्हारे पत्रको पढ़कर मुझे दुःख हुआ है। आज मैं आश्रममें हूँ; मैंने तुम्हारी भेजी हुई दूसरी बंडी अभी पहनी है। इसका पता तो मुझे आज ही चला है। यह मेरे नापकी नहीं है। आस्तीनें बहुत छोटी हैं, परन्तु इससे कोई हानि नहीं। मैं इसे पहन रहा हूँ और जबतक चलेगी, पहनता रहूँगा।
मेरे मनमें इस बारेमें जरा भी शक नहीं है कि तुम अपना करार चुपचाप पूरा करोगी चाहे तुम्हारे आश्रममें आने या मुझे पत्र लिखनेपर रोक भी लगा दी गई हो। इस प्रकारके बलात् नियन्त्रण और प्रतिबन्धसे तुममें अधिक मनोबल और निश्चय-बल आयेगा।
अगर तुम्हें मुझे पत्र लिखने और मेरे पत्र लेनेकी अनुमति मिल जाये तो यह भी बड़ी बात होगी। जो भी अन्तिम निर्णय हो मुझे अवश्य लिखना।