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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सच्चे स्वराज्यकी प्राप्ति ही नहीं हो सकती। मैं मानता हूँ कि अब हमारे भरती होनेसे हम दो कार्य कर सकते हैं; हममें वीरता पैदा होगी, हम थोड़ी-बहुत शस्त्र-क्रिया सीख लेंगे और जिनके साथ हम हिस्सेदार होना चाहते हैं, उनको मदद देकर हमारी योग्यता ज्यादा सिद्ध करेंगे। उनके अत्याचारोंका विरोध करना और उनके कष्टमें हिस्सा लेना, ये दोनों कार्य करना हमारे लिए योग्य है। मैं चाहता हूँ कि तुम इस प्रश्नपर खूब शान्तिसे विचार कर लो। मेरी सलाह है, यह पत्र देवदासको भेज देना और उसके साथ भी इस विषय में वार्तालाप करना।

मोहनदास गांधी

महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

३५७. पत्र: पुंजाभाई शाहको

[बम्बई]
जुलाई २२, १९१८

सुज्ञ पुंजाभाई,

जिसे हमने धर्म समझा है, वह धर्म नहीं है। अहिंसाके नामपर हम भारी हिंसा करते हैं। खून बहाने से डरते हैं; किन्तु दिन-रात खून चूसते हैं। बनिये अहिंसा-धर्मका पालन कर ही नहीं सकते। कुछ श्रावकोंके शुष्क त्यागमें या चींटियोंको खिलानेमें धर्म नहीं है। शरीरका मोह त्यागे बिना मोक्ष नहीं मिल सकता और आत्माकी पहचान नहीं हो सकती। आपको इस बातकी प्रतीति हो जाये और आप सच्चे मोक्ष-मार्गका दर्शन करना चाहें, तो मेरी सलाह यह है कि आश्रमको अपनाइए। जो मकान बनाने हैं, उन्हें आप पूरे कराइए और मगनलालको फिलहाल मुक्त कर दीजिए। आपको नौकर चाहिए। परसरामको रख लीजिए। मगनलालको मुक्त करनेकी जरूरत मालूम होती है। आप गहरा विचार कीजिए। आपको यह ज्ञान जब दीयेकी तरह ही सूझे, तभी आप इसमें पड़िए। सूझेगा तो आश्रममें बहुत शान्ति अनुभव करेंगे। नहीं सूझेगा तो थोड़े समयमें ऊब जायेंगे। आप, फूलचन्द और मगनलाल मिलकर विचार करें। पहले तो आप अकेले ही विचार कीजिए।

मोहनदासके भगवत्-स्मरण

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४