पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/५१५

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३५८. पत्र: महादेव देसाईको

नवागाँव
पूर्णिमा [जुलाई २३, १९१८]

भाईश्री महादेव,

आपने रोष किया, इसलिए आप नहीं आ सके और शिवाभाई भी नहीं आ सके। हम दोनों पैदल बहुत आरामसे यहाँ आ गये और सवा दस बजे पहुँच गये। लोग चकित रह गये। सर्कल इन्सपेक्टरने जो जहर फैलाया है उसे तो दूर करना ही चाहिए। इसी कारण हम दो-चार दिन यहाँ रुकेंगे। आप अथवा शिवाभाई डाक लेकर आ जाना।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च:]
अनसूयाबेनको खबर देना कि हम यहाँ बृहस्पतिवार तक तो हैं ही।
डाकके लिफाफे, कार्ड और सादे लिफाफे लेते आना अथवा भेज देना।
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७९०) से।
सौजन्य: सी० के० भट्ट।
 

३५९. पत्र: सर एस० सुब्रह्मण्यम्को

[नवागाँव]
जुलाई २४, १९१८

प्रिय सर सुब्रह्मण्यम्,[१]

मुझे आशा है कि इस पत्रको आप मेरी धृष्टता नहीं समझेंगे। मुझे बहुत दिनोंसे आपकी भाषा असन्तुलित लग रही है; ऐसी भाषा एक योगीको शोभा नहीं देती। आपके आरोप मुझे बहुत-सी बातोंमें विचारहीन मालूम हुए। मेरी नम्र रायके अनुसार आप जितने स्पष्टवादी और निर्भय हैं, उतने ही सत्यपरायण रहे होते तो आपने देशकी जितनी सेवा की है, उससे कहीं अधिक कर पाते। आपके मुखसे अविचारपूर्ण और अनुदार शब्द निकलना असत्यके समान माना जायेगा। आपकी राजनीति बाजारू ढंगकी नहीं है, बल्कि उसका आधार धार्मिक है। मेरी आपसे प्रार्थना है कि देशके सामने

 
  1. मद्रास उच्च न्यायालयके अवकाश-प्राप्त न्यायाधीश।