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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आप एक सच्चे भारतीय सज्जनका शुद्ध उदाहरण उपस्थित करें। ऐसा करनेकी आपमें शक्ति है।

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाई की हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
 

३६०. पत्र: विनोबा भावेको

[नवागाँव]
जुलाई २४, १९१८

तुम्हारा विचारणीय पत्र मिला।

आदर्श तो तुमने लिखा है, वही है। यह भी सही है कि उस आदर्शको सिद्ध करने के लिए शिक्षक गुजराती ही चाहिए। परन्तु उसके अभावमें महाराष्ट्र के शिक्षकका उपयोग अनुचित नहीं माना जा सकता। चरित्रहीन गुजराती शिक्षककी बनिस्वत चरित्रवान् मराठी शिक्षक भी हो, तो उसे मैं अच्छा समझता हूँ। अभी तो मेरे तरीकेके अनुसार पढ़ानेवाला गुजराती मिलना मुश्किल है। तुम न हो, तो संस्कृत शिक्षण बन्द हो जाये या फिरसे काकाको[१] पढ़ाना पड़े, ऐसी दयनीय स्थिति है। इसलिए अभी तो आदर्शको ध्यानमें रखकर तुम्हें ही संस्कृत पढ़ानी है।

महाराष्ट्र में प्रवेश करनेकी मेरी तीव्र इच्छा है। परन्तु अभी समय नहीं है। मेरी योग्यता नहीं। इतने मनुष्य हमारे पास नहीं हैं। तुम, काका और मामा मेरे सम्पर्कमें आये हैं। इसमें परमात्माकी कोई इच्छा न हो! भाई देशपांडेके[२] साथ मेरा सम्बन्ध, भारत सेवक समाज (सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) पर मेरी श्रद्धा, महाराष्ट्रके प्रति मेरा मोह, चम्पारनमें महाराष्ट्रियोंसे प्राप्त भारी सहायता, महाराष्ट्रके संगीत-शास्त्रीका आगमन, भाई कोतवालकी बहनका कुछ समयमें होनवाला प्रवेश, भाई नारायणरावसे जान-पहचान, यह सब सूचित करता है कि महाराष्ट्रमें मुझे कुछ-न-कुछ विशेष करना है। परन्तु―

‘नीपजे नरथी तो कोई नव रहे दुःखी,
शत्रु मारीने सहु मित्र राखे।’[३]

इसलिए इस महत्त्वाकांक्षाके बाद भी क्या होगा यह कौन जानता है?

 
  1. काका कालेलकर।
  2. केशवराव देशपांडे (१९८८-१९३९); बड़ौदाके सुप्रसिद्ध सार्वजनिक कार्यकर्ता व बैरिस्टर; गंगानाथ भारती विद्यालय के संस्थापक।
  3. मनुष्यका बस चले तो कोई दुःखी न रहे। शत्रुको मारकर सब मित्रको ही रखें।