पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/५१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८५
पत्र: देवदास गांधीको

 

तुम्हारी इच्छा मैं ध्यानमें रखूँगा। मैं भी तुम्हें अपने सहवासमें रखना चाहता हूँ, परन्तु अभी यह सम्भव नहीं दिखता। तुम आश्रमवासी ही हो; इसमें तो सन्देहकी कोई बात ही हो नहीं सकती।

बापू

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

३६१. पत्र: देवदास गांधीको

[नवागांव]
जुलाई २४, १९१८

चि० देवदास,

आजका मेरा पत्र बहुत दुःखद समाचार देनेवाला साबित होगा। भाई सोराबजी जोहानिसबर्गमें थोड़ी किन्तु सख्त बीमारी भोगकर चल बसे। मृत्युके भयसे तो हम थोड़े-बहुत अंशमें छूट गये हैं। फिर भी ऐसी मौत खटके बिना नहीं रह सकती। सबको ऐसी आशा थी कि भाई सोराबजी दक्षिण आफ्रिकामें ढाल बनकर रहेंगे और जबरदस्त काम करेंगे। वह आशा आज नष्ट हो गई है। दक्षिण आफ्रिकामें उनकी मृत्युसे शोक छा गया है। यह वहाँके तारोंसे समझमें आता है। ईश्वरकी लीला न्यारी है। कर्मका नाश नहीं होता, सारी प्रवृत्ति अच्छे-बुरे फल देती ही है और जिसे हम आकस्मिक घटना मानते हैं, वह भी दरअसल आकस्मिक नहीं होती। वह हमको ही आकस्मिक मालूम होती है। कोई अपनी मौतसे पहले नहीं मरता। और मौत किसी वस्तुका केवल अन्तिम रूपान्तर है; वह सर्वथा विनाश नहीं है। आत्मा तो अमर। रूपान्तर भी शरीरका होता है। स्थिति बदलती है, आत्मा नहीं बदलती। यह सब ज्ञान शान्ति देनेके लिए काफी है। यह ज्ञान हम पचा सके हैं या नहीं, इसकी परीक्षा ऐसे मौकोंपर होती है। सोराबजी तो अमर हो गये। उन्होंने सभी काम ऐसे किये हैं, जिनसे उनके देशकी कीर्ति उज्ज्वल हो। अगर हम अपना फर्ज अदा करते रहें, तो उनके चले जानेसे कोई हानि नहीं होगी। आत्मीय जनोंकी मृत्युसे हमें अपने कर्त्तव्यका अधिक भान हो, तो प्रियजनोंका वियोग न खटके।

बापू

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४