पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/५२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उपयोग करने देकर, अहिंसक बनाया जा सकता है। अहिंसाका उपदेश क्षत्रियोंने क्षत्रियोंको दिया है।

पूर्व और पश्चिमके बीच जो फर्क मैंने बताया है[१], वही है और वह जबरदस्त है। पाश्चात्य संस्कृति निरंकुश है, हमारी संयम-प्रधान है। हम तो तभी हिंसा करेंगे जब वह अनिवार्य होगी और उसका उद्देश्य लोक-संग्रह होगा। पाश्चात्य देश निरंकुश होकर हिंसा करेंगे। मैं पार्लियामेंट वगैरामें जो भाग लेता हूँ, वह नई प्रवृत्ति नहीं है। वह पुरानी प्रवृत्ति है और उन संस्थाओंको नियममें रखने तक ही सीमित है। मॉण्टेग्यु साहबकी योजनापर मेरा लेख पढ़ोगे, तो मालूम हो जायेगा। मुझे उसमें रस आ ही नहीं सकता। परन्तु उसमें भाग लेकर मैं अपने आदर्शोंको फैला सकता हूँ। जब मेरे लिए अपने आदर्शोंका भंग करके उसमें रहनेका समय आया, तब मैंने उससे अलग रहनेका विचार कर लिया।

मेरे खयालसे मैंने जितना लिखा है, उससे तुम्हें उत्तर मिल जायेगा। मैं एक दिनके लिए आऊँ, तब बहुत स्पष्टीकरण नहीं हो सकता। इसलिए तुम्हें लिख भेजता हूँ। इससे तुम विचार कर सकोगे। और ज्यादा शंका हो, तो पूछ सकते हो।

मैं अभी तो नवागाँवमें ही हूँ। आज यहाँसे रवाना होनेका विचार था; परन्तु शायद रवाना नहीं हो सकता।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

३६४. पत्र: रावजीभाई पटेलको

[नवागाँव]
जुलाई २५, १९१८

भाईश्री रावजीभाई,

तुम्हारा पत्र मिला; यह ठीक हुआ। तुम्हें जो-कुछ पूछना हो, पूछना। फिर भी लिखित उत्तर दूँ तो उससे तुम्हें विचार करनेका अवसर मिलेगा। मुझे पूरा विश्वास है कि तुम मणिभाई और बच्चोंके प्रति अपने कर्त्तव्यका पूरी तरह पालन कर रहे हो। इसीलिए तो तुम्हारा वियोग सहन हो जाता है। मैं मानता हूँ कि उनके साथ रहकर तुम अपना और उनका बिगाड़ करोगे। तुम सोजित्रामें रहकर और जैसा मणिभाई कहें वैसा करके विमलाका[२] हित-साधन नहीं कर सकोगे। परन्तु तुम बाहर रहकर और तपस्याके द्वारा अपना चरित्र दृढ़ करके उन सबका भला कर सकते हो। मणिभाईके विरुद्ध तो तुम्हारा सत्याग्रह है ही और सत्याग्रह

  1. देखिए “प्राचीन सभ्यता”, ३०-३-१९१८।
  2. रावजीभाईकी पुत्री।