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स्वर्गीय सोराबजी शापुरजी अडाजानिया

कभी बुरा हो ही नहीं सकता। तुम मणिभाईके प्रति वैरभावके कारण नहीं बल्कि उनके प्रति प्रेमभावके कारण बाहर रहते हो। मीराबाईने प्रेमदृष्टिसे अपने पतिका त्याग किया और महात्मा बुद्धने प्रेमके वश होकर अपनी सती स्त्री और माता-पिताका त्याग किया। जो-कुछ तुमपर लागू होता है, वही शिवाभाईपर भी होता है। मान लो, तुम लड़ाईसे सकुशल लौट आये। तब क्या तुम्हारी दशा बदल नहीं जायेगी? तब क्या तुम अपने बाल-बच्चोंकी देखभाल करनेके लिए अधिक योग्य नहीं हो जाओगे? लड़ाईमें जानेमें हमारा उद्देश्य भोग-विलास नहीं, परन्तु अपने और अपने देशके महान् कष्टोंका अन्त करना है। इसमें भूल हो तो भी नुकसान नहीं होगा।

मुझसे मिलकर शान्ति प्राप्त करना असम्भव है। हम जबतक मैल छुड़ा रहे हैं, तबतक तो अशान्ति रहेगी ही। किन्तु उस अशान्तिमें शान्ति है, हमें ऐसा अनुभव होना चाहिए। हम कपड़ोंको धोते समय पछाड़ते हैं, परन्तु जानते हैं कि इससे सफाई होगी और इसीलिए प्रसन्नता प्राप्त करते हैं।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

३६५. स्वर्गीय सोराबजी शापुरजी अडाजानिया

[नडियाद]
जुलाई २७, १९१८

सम्पादक


‘बॉम्बे क्रॉनिकल’,


महोदय,

सूरतके पास स्थित अडाजानके श्री सोराबजी शापुरजी हाल ही में जोहानिसबर्गमें चल बसे। वे भारतकी एक श्रेष्ठ संतान थे। मृत्युके समय उनकी आयु केवल ३५ वर्षकी थी। अपने इस सहयोगीके प्रति अत्यन्त दुःखित मनसे अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करना मेरा कर्त्तव्य है। श्री सोराबजीको उनके गिने-चुने मित्र तो जानते थे, किन्तु भारतीय जन-समाज उनसे अपरचित था। उन्होंने दक्षिण आफ्रिकामें काम किया था। वे सत्याग्रहियोंमें अग्रगण्य थे। वे उनमें उस समय सम्मिलित हुए थे जब दक्षिण आफ्रिकामें सत्याग्रह अपनी चरम अवस्थामें था; और ट्रान्सवालके बाहर फैल चुका था। मुझे स्वीकार करना चाहिए कि जब वे सत्याग्रहके इस संघर्षमें शामिल हुए तब मेरे मनमें उनकी शक्तिके बारेमें सन्देह था, परन्तु उन्होंने बहुत जल्दी प्रथम श्रेणीके सत्याग्रहीके रूपमें अपनी धाक जमा ली। यह बात न तो उनके मनमें और न मेरे ही मनमें आई थी कि उन्हें कई बार सपरिश्रम कारावास भोगना पड़ेगा और उसका योग १८ मास तक जा पहुँचेगा। परन्तु उन्होंने इस कष्टको वीरतापूर्वक और प्रसन्नतापूर्वक सहा। जब उन्होंने दक्षिण