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पत्र: मिली ग्राहम पोलकको

 

आज मैंने यह पत्र सुसंबद्ध रूपमें नहीं लिखा है परन्तु अपने मनोमन्थनकी कुछ कल्पना तुम्हें दी है।

तुम्हें पता लग गया होगा कि सोराबजी गुजर गये हैं। उनकी मृत्यु जोहानिसबर्ग में हुई। बहुत आशास्पद जीवनका एकाएक अन्त हो गया। ईश्वरकी लीला अगम्य है।

सस्नेह,

तुम्हारा,
मोहन

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य : नारायण देसाई
 

३६९. पत्र: मिली ग्राहम पोलकको

[नडियाद]
जुलाई २९, १९१८

प्रिय मिली,

सोराबजी नहीं रहे। यह दुःखद समाचार अभी-अभी जोहानिसबर्ग से तार द्वारा मिला। इस मौतमें यों तो, कोई विशेषता नहीं है; सोराबजी-जैसे बहुत-से लोग मर चुके हैं और अब भी मरते हैं। किन्तु हम सबके जीवनमें सोराबजीका इतना महत्त्वपूर्ण स्थान बन गया था कि उनकी अचानक मृत्युसे हमें सख्त धक्का पहुँचा है। आत्माका नाश नहीं होता और कर्मका प्रवाह कभी टूटता नहीं, इस विश्वासके बलपर ही हम जीवनमें कर्म करते रहनेका उत्साह कायम रख पाते हैं। जब घटनाओंका उद्देश्य और औचित्य हमारी समझ में नहीं आता, तब हमें आघात पहुँचता है। परन्तु मुझे ऐसा लगता है कि ईश्वरकी योजनामें कुछ भी असामयिक और हेतुविहीन नहीं होता।

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई