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३७०. पत्र: एस० के० रुद्रको

[नडियाद]
जुलाई २९, १९१८

प्रिय श्री रुद्र,

आपने अपने सुखमें मुझे भाग लेने दिया, इसके लिए मैं आभारी हूँ।[१] सुधीर बहुत ही भला लड़का है। हाँ, वह बहुत-अच्छा काम कर रहा है। दूसरे लड़के भी अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं। यह व्यवस्थित प्रशिक्षणका परिणाम है।

आप तो मेरे फौजी भरतीके कामको ठीक समझते हैं, लेकिन चार्ली मेरे साथ लड़ रहा है। उसके खयालसे शायद मैं अपने-आपको भ्रममें डाल रहा हूँ। उसे यह लगता है कि मेरे इस कामसे अहिंसाके ध्येयकी मेरी उपासनाको हानि पहुँचेगी। मैंने तो इसी ध्येयकी उपासनाके लिए यह काम हाथमें लिया है। मैं जानता हूँ कि मेरी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। जब मैं यह मानकर कि फौजी भरती कराना मेरा काम नहीं है, आरामसे बैठा हुआ था, तब भी मेरी जिम्मेदारी उतनी ही भारी थी। तब यह डर था कि मेरे वचनोंपर श्रद्धा रखनेवाले इस झूठे खयालसे कि यह चीज अहिंसा है बिलकुल नामर्द बन जायेंगे या बने रहेंगे। शरीर-बलकी व्यर्थता हमारी समझमें आये, उस शक्तिका हम त्याग करें, उससे पहले हममें मारनेकी पूरी शक्ति होनी चाहिए। ईसा मसीहमें दुश्मनोंको जलाकर भस्म करनेकी शक्ति थी, परन्तु उन्होंने उसे काममें नहीं लिया और अपने-आपको मार डालने दिया। क्योंकि वे इतने अधिक प्रेमसे भरे हुए थे, आदि।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
 
  1. श्री रुद्रके पुत्र फौजमें सेकंड लेफ्टिनेन्ट नियुक्त हुए थे और उनके दामाद प्राकृतिक विज्ञानकी परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे।