पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/५२९

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३७३. पत्र: कस्तूरबा गांधीको

[नडियाद]
जुलाई २९, १९१८

प्रिय कस्तूर,

मैं जानता हूँ कि तुम मेरे साथ रहनेको बहुत तरसती हो; परन्तु मेरा खयाल है कि जो काम हमें करने हैं, वे करने ही चाहिए। अभी तुम्हें वहीं रहना चाहिए। यदि तुम वहाँ जो इतने सारे बच्चे हैं उन्हें अपने ही बच्चे समझो, तो तुरन्त तुम्हें बच्चोंका अभाव खटकना बन्द हो जाये। ढलती उम्रमें इतना तो करना ही चाहिए। तुम जैसे-जैसे सबपर प्रेम भाव रखोगी, सबकी सेवा करोगी, वैसे-वैसे तुम्हारे भीतर आनन्द स्फुरित होगा। तुम्हें नित्य प्रातःकाल सब बीमारोंको देखना ही चाहिए और उनकी सेवा करनी ही चाहिए। जिनके लिए विशेष भोजन बनाना हो, उनके लिए विशेष भोजन बनाना या रखना चाहिए। जो मराठी बहनें हैं, उनसे मिलना चाहिए। उनके बच्चोंको खेल-कूद कराना और उन्हें लेकर घूमने जाना चाहिए। तुम्हें उनके मनपर यह असर डालना चाहिए कि वे हमसे अलग नहीं हैं। उनकी तन्दुरुस्ती अच्छी रहनी चाहिए।

निर्मलाके साथ अच्छी बातें यानी धर्म वगैराकी बातें करनी चाहिए। तुम उससे भागवत वगैरा पढ़वाकर सुन सकती हो। इसमें उसे भी रस आयेगा। यह निश्चित समझो कि यदि तुम इस तरह दूसरोंकी सेवामें लग जाओगी, तो तुम्हारा मन सदा प्रसन्न ही रहेगा। पुंजाभाईके खाने-पीनेका ध्यान तो रखना ही चाहिए।

मोहनदास

[गुजराती से]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

३७४. पत्र: किशोरलाल मशरूवालाको

[नडियाद]
जुलाई २९, १९१८

भाईश्री किशोरलाल,

यह पत्र तुम्हारे तथा भाई नरहरिके लिए है। भाई नारायणरावका यह आरोप कि महाराष्ट्रियों और गुजरातियोंमें भेद किया जाता है जिस हदतक सही हो, उसहद तक हमें उसे दूर करनेका प्रयत्न करना चाहिए। यह अहिंसाके प्रयोगका क्षेत्र है। पहला कदम यह है कि इस आरोपमें सार कितना है, इस बात-पर तुम सब मिलकर विचार करो। गुजराती स्त्रियोंको महाराष्ट्री स्त्रियोंसे खब मिलने-जुलनेका प्रयत्न करना चाहिये। लड़के ऐसा भेद जरा भी न रखें, यह सबसे

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