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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

न्यायप्रशासनमें सुधार हो; नशाबन्दी कानूनोंमें सुधार हो; वन-नियमोंमें कानूनकी सख्ती कम की जाये; सार्वजनिक स्वास्थ्यमें उन्नति और चिकित्सा आदिकी समुचित व्यवस्था की जाये; गाँव-पंचायतोंको फिरसे स्थापित किया जाये। ये सारी माँगें ऐसी हैं जिनका उद्देश्य और ध्येय हमारे लाखों-करोड़ों गरीब देशवासियोंकी जिन्दगीको सुखी बनाना है। उनकी वर्तमान दशासे कोई भी सन्तुष्ट होनेका दावा नहीं कर सकता। हम बिना किसी संकोचके निवेदन करते हैं कि इन सुधारोंके लिए शिक्षित भारतीय प्रयत्नशील रहे हैं; और इनके अबतक लागू न किये जानेमें दोष उनका नहीं है। यह सच है कि वे जो अधिकार, उनके अपने देशमें उन्हें न्यायतः प्राप्त होने ही चाहिए, उनकी व्यावहारिक मान्यताकी माँग उत्साहके साथ करते रहे हैं; किन्तु ऐसी माँगके पीछे अपने अपेक्षाकृत कम खुशनसीब देशभाइयोंका हित-साधन करनेकी उनकी हार्दिक इच्छा का जितना हाथ है, उतना ही हाथ उनकी राष्ट्रीय आत्माभिमानकी भावनाका भी है। यदि देशके शासनमें जनताके प्रतिनिधि और प्रवक्ताकी हैसियतसे उन्होंने बराबर थोड़ी-बहुत वास्तविक सत्ता प्रदान किये जानेका आग्रह किया है, यदि उन्होंने प्रशासनमें मातहती और घटिया ढंगका दर्जा स्वीकार करनेसे इनकार कर दिया है, यदि उन्होंने जाति या धर्मपर आधारित सारे भेदभाव और अयोग्यताओंको हटानेका आग्रह किया है, देशकी सुरक्षाकी जिम्मेदारीमें उन्हें जितना हिस्सा दिया गया है यदि उसके प्रति उन्होंने असन्तोष व्यक्त किया है, और यदि उन्होंने प्रतिक्रियावादी और दमनकारी कानूनोंके विरुद्ध रोष प्रकट किया है, तो ऐसा केवल इसलिए कि भारतीय होनेके नाते अपने अधिकारोंकी माँग करना उनके लिए एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक कर्त्तव्य है। समय-समयपर सरकारने जो प्रगतिशील कदम उठाये हैं उनके महत्त्वको स्वीकार करनेमें राष्ट्रीय कांग्रेस या मुस्लिम लीगने कभी देर नहीं की है। और इसीलिए हम निःसंकोच यह कहनेकी अनुमति चाहेंगे कि वर्षोंके अनुभवके बाद हमारा यह निश्चित मत है कि वर्तमान शासन प्रणालीके अन्तर्गत जनताकी खुशहाली और प्रगतिके लिए जितना जरूरी है उसे देखते हुए केवल सामाजिक और आर्थिक सुधारोंसे कुछ नहीं बनेगा। भारतीय जनमत बहुत ही शक्तिहीन है। नौकरी सम्बन्धी और क्षेत्रीय हितोंके सामने सारे देशके हित को कम महत्त्व दिया जाता है। इस प्रणालीमें ऐसा परिवर्तन किया जाना चाहिए कि आन्तरिक शासन-व्यवस्थामें जिस हदतक सम्भव हो उस हदतक जनताकी इच्छा ही सर्वोपरि रहे।

योजनाकी मुख्य-मुख्य बातें

महानुभाव, अपने इसी दृढ़ विश्वासके अधीन राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीगने उन संवैधानिक और प्रशासनिक सुधारोंपर विचार किया जिसे यहाँ तथा इंग्लैंडकी सरकारसे स्वीकार करने का निवेदन हम करना चाहते हैं। सुधारोंकी यह संयुक्त योजना इन दोनों संगठनोंकी समितियोंकी संयुक्त बैठकोंमें होनेवाले गम्भीर विचार-विनिमयका परिणाम है। यहाँ हम निवेदन कर दें कि वाइसराय महोदयकी विधान परिषद्के उन्नीस निर्वाचित सदस्योंने १९१६ की शरद ऋतु जो प्रार्थनापत्र दिया था वह कांग्रेस और लीगके संयुक्त प्रस्तावोंसे मिलता हुआ है। अब हम इस सुधार-योजनाके मुख्य पहलुओंकी