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परिशिष्ट

चर्चा करने की अनुमति लेते हैं। ये जिन बुनियादी सिद्धान्तोंपर आधारित हैं वे हैं, पहला, भारतके साथ ब्रिटेनके सम्बन्धोंकी रक्षाकी जानी चाहिए, और दूसरा, कि इस मूलभूत सिद्धान्तकी सीमामें रहते हुए, भारत सरकार और प्रान्तीय सरकारोंके स्वरूप और संविधानमें परिवर्तन करके निर्वाचित सरकारोंका रूप दिया जाये जो जनताके प्रति उत्तरदायी हो, और जनता अपना शासन अपने चुने हुए प्रतिनिधियोंके जरिए करे। ब्रिटेन और भारतके सम्बन्ध सुरक्षित रखनेकी दृष्टिसे हमारा सुझाव है कि भारत सरकार विदेशी मामलों और देशकी रक्षाके मामलेमें सम्राट्की सरकार और उसके जरिए ब्रिटिश संसदके प्रति उत्तरदायी रहे। शाही विधान परिषद्को इन दो प्रश्नोंपर कोई अधिकार नहीं होगा और न ही उसे देशी रियासतों और सरकारके सम्बन्धों में हस्तक्षेप करनेका अधिकार होगा। इतनी बात निश्चित हो जाने के बाद, हमारा अनुरोध है कि आन्तरिक मामलोंमें नियन्त्रणका अधिकार भारत मन्त्रीकी जगह भारतीय विधान-मण्डलके हाथों में दे दिया जाये। भारत सरकार भी इसी प्रकार प्रान्तीय सरकारोंको सत्ता प्रदान कर दे, और ये सरकार अपने प्रान्तके विधान-मण्डलके प्रति उत्तरदायी हों। स्पष्ट ही है कि ऐसी व्यवस्थामें कार्यपालिकामें बहुत अधिक संख्या में भारतीय नियुक्त हों। विभिन्न मन्त्रिमण्डलों और विधान-मण्डलोंकी सदस्य संख्या बढ़ा दी जाये और उनका गठन इस प्रकार हो कि उनमें बहुत बड़ा बहुमत जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूपसे निर्वाचित सदस्योंका हो और जहाँतक सम्भव हो, ज्यादासे-ज्यादा लोगोंको चुनाव में मतदानका अधिकार दिया जाये। इन विधान-मण्डलोंको न केवल कानून-निर्माण बल्कि वित्त और प्रशासनके मामले में भी वास्तविक और ठोस सत्ता प्रदान की जाये। कांग्रेस और मुस्लिम लीगका प्रस्ताव है कि कार्य-कारिणीमें आधे सदस्य भारतीय हों, और विधान-मण्डलोंके ८० प्रतिशत सदस्य जनता द्वारा चुने हुए हों। हमारी दृष्टिमें यह प्रस्ताव बिलकुल मुनासिब है। इसी प्रकार विधान-मण्डलोंको जितनी सत्ता देनेका सुझाव है वह भी बहुत ज्यादा नहीं है; वह व्यावहारिक है। विधि विषयक, वित्तीय अथवा प्रशासनिक मामलोंके बारेमें कोई अनुपयुक्त या जल्दबाजीमें तैयार किया गया विधेयक पास न किया जाये, उक्त सुधार-योजनामें इसकी समुचित रोकथामका पर्याप्त प्रबन्ध कर दिया गया है। अल्पसंख्यकोंके हितोंकी रक्षाकी भी समुचित व्यवस्था की गई है। अल्पसंख्यकों के बारेमें हम आपका ध्यान उक्त योजनाकी इस व्यवस्थाकी ओर आकर्षित करना चाहेंगे जिसके अनुसार साम्प्रदायिक हितोंको प्रभावित करनेवाले किसी भी गैर-सरकारी प्रस्तावपर यदि सम्बन्धित सम्प्रदायके तीन-चौथाई सदस्य आपत्ति करेंगे तो उस प्रस्तावपर किसी भी विधान-मण्डलमें विचार नहीं किया जायेगा।

भारत-मन्त्री और उसकी कार्यकारिणी परिषद् से सम्बन्धित जो सुधार प्रस्तावित किये गये हैं वे स्वयं भारतकी शासन-प्रणाली में प्रस्तावित सुधारके परिणाम हैं। हमारा विश्वास है कि उनके कारण काम-काजके सुचारु संचालनमें फर्क पड़े बिना बहुत-सा अनावश्यक खर्च बचेगा, और दोनों देशोंकी सरकारोंमें सामंजस्यकी स्थापना होगी।

उक्त प्रस्तावोंके समर्थनमें इस अभिनन्दनपत्र के साथ हम जो प्रार्थनापत्र आपकी सेवामें प्रस्तुत कर रहे हैं, उसमें सुधारकी आवश्यकता विस्तारपूर्वक निवेदित की गई