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परिशिष्ट

 

लगानकी अदायगी न होने और जमींदारके सम्मत अधिकारोंमें हस्तक्षेपके सम्बन्धमें वे निश्चय ही कानूनका पालन किया जाना पसन्द करेंगे और रैयतको भी वैसी ही सलाह देंगे। इस सीमातक फिलहाल जिलेमें उनकी मौजूदगीसे कुछ नुकसानके बजाय लाभ ही होनेकी सम्भावना है। साथ ही वे आन्दोलनका केन्द्र-बिन्दु बने रहना चाहते हैं। उन्हें सभी पक्षोंके प्रति न्यायपूर्ण रहनेवाला मध्यस्थ माननेके बजाय बागान-मालिकोंके विरुद्ध रैयतका नेता माना जाता है और इसलिए यह सम्भव नहीं है कि उनको लेकर कोई बवंडर खड़ा न हो।

हृदयसे आपका,
जे० टी० ह्विटी

सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन
 

परिशिष्ट ४

दफ्तरी पत्रव्यवहार और टिप्पणियोंके उद्धरण

(क) जे० एल० मैरीमैनका पत्र

मोतीहारी
नवम्बर १८, १९१७

प्रिय श्री गांधी,

आपका १४-११-१९१७ का पत्र मिला।

आप पाठशालाएँ खोलनेका प्रयत्न कर रहे हैं, यह जानकर मुझे खुशी हुई। अगर सूचित कर सकें कि आप किस ढंगकी पाठशालाएँ खोलना चाहते हैं और उनमें किस ढंगकी शिक्षा दी जायेगी तो अच्छा होगा। जहाँ शालाएँ खोलनी हैं उन जगहोंके नाम भी लिखें।

आपके इसी माहके १७ तारीखके पत्रमें, आपने कुछ काश्तकारोंकी इस शिकायतकी चर्चा की है कि उन्हें कतिपय कागजोंपर हस्ताक्षर करनेको विवश किया गया था...इस विषयमें, यदि उन्हें लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है, तो वे अदालत में जानेको स्वतन्त्र हैं।

मैं किसी भी ऐसे मामलेके बारेमें कोई ऐसी बात सुननेकी स्थितिमें नहीं हूँ जो अदालतके विचाराधीन हैं अथवा जो अदालतकी रायको किसी रूपमें प्रभावित कर सकती हो...इसलिए मुझे प्रसन्नता है कि शिवरतन नोनिया द्वारा दायर किये गये मुकदमेके बारेमें अपनी राय मुझे भेजनेका आपका इरादा नहीं है।

जे० एल० मैरीमैन