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परिशिष्ट

बतानेका इरादा जाहिर किया है। वे सिराहा-कारखानेकी रैयत द्वारा किये गये कुछ समझौतोंके प्रश्नकी भी जाँच कर रहे हैं। मुझे श्री अमनसे मालूम हुआ कि बेलवामें श्री गांधीने अधिकृत जाँच-पड़ताल की और वादियों तथा कुछ गवाहोंके बयान लिये।

सार्वजनिक अधिकारीके नाते मैं समझता हूँ, कि यदि बाहरसे मित्रतापूर्ण सहायता मिले तो मुझे उसका स्वागत करना चाहिए। किन्तु जो मामले वस्तुतः न्यायालयोंमें विचाराधीन हैं, उनकी स्वतन्त्र रूपसे जाँच-पड़तालकी प्रथाका मेरी दृष्टिमें, बड़ा दुरुपयोग हो सकता है, विशेषकर जब कि सम्बन्धित लोग चम्पारनके लोगोंकी तरह अनजान तथा असन्तुलित हों और उनका झुकाव झूठ बोलनेकी ओर हो। श्री गांधी स्वयं निष्पक्ष होने का दावा करते हैं; हो सकता है कि यह दावा सही हो, किन्तु उनके बहुत से सहायकों की निष्पक्षता सन्देहास्पद है, और मैं सोचता हूँ कि वे अपने स्वार्थकी दृष्टिसे मामले में नमक-मिर्च मिलानेसे बाज नहीं आयेंगे। श्री गांधी यह विश्वास दिला चुके हैं कि वे केवल उन्हीं मामलोंमें हस्तक्षेप करेंगे, जहाँ उनको रैयतके साथ स्पष्ट अत्याचार दिखाई देगा। किन्तु मेरी समझमें श्री गांधी निर्भ्रान्त रूपसे यह तय नहीं कर सकते क्योंकि मामलोंमें इस प्रकारका भेद करना सर्वथा असम्भव है। इस प्रथाको या तो सभी मामलोंमें स्वीकार करना चाहिए अथवा एकमें भी नहीं। इस मुद्देपर मैं पथप्रदर्शन चाहता हूँ।

अनुच्छेद ९ में उल्लिखित बेलगाँव, गुजरात तथा बम्बईसे स्वयंसेवकोंको लाये जानेके बारेमें भी मुझे सरकारके रुखके बारेमें सूचना दी जाये। श्री मैक्फर्सनने १९१७ के तारीख २० जुलाईके अर्धसरकारी-पत्र संख्या २५७७ सी०-१५७१/२ में हेकॉकको हिदायत दी थी कि वे श्री गांधीको सूचना दे दें कि उन्हें (हेकॉकको) “मालूम नहीं कि सरकार स्वयंसेवकोंके लाये जानेके प्रति क्या रुख ग्रहण करेगी।” क्या सरकार अब अपने रुखके बारेमें सूचित कर सकती है? ...

हृदयसे आपका,
जे० एल० मैरीमैन

(ग) एच० मैक्फर्सनको लिखे गये एल० एफ० मॉर्सहैडके पत्रका अंश

नवम्बर २७, १९१७

इस समय जिलेमें निम्नलिखित तीन बातोंसे किसानोंका उद्वेग बढ़ रहा है― स्वराज्यका प्रचार, गांधीकी कार्रवाई और हिन्दुओं और मुसलमानोंका मनमुटाव। इनकी प्रतिक्रिया एक-दूसरेपर होती है और किसानोंका मानसिक सन्तुलन बिगड़ता है एवं उनमें कानून और सत्ताके प्रति उपेक्षाका भाव बढ़ता है। जैसी कि पहले खबर दी जा चुकी है, सारन जिलेमें गाँव-गाँवमें स्वराज्य-सभाएँ की जा रही हैं और कहा जाता है कि सिपहियाकी घटनाको उन्हींसे उत्तेजन मिला। और गांधीका समर्थन पाकर उसके कारण गोपालगंजके मनियारा कोठी क्षेत्रमें भी अशान्ति उत्पन्न हो रही है।

मैरीमैनके पत्रसे प्रकट हो जायेगा कि चम्पारनमें लगानसे इनकारी भी गम्भीर रूप धारण करती जा रही है और मजदूरोंके झगड़े भी तय नहीं हुए हैं। वे जानना