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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाहते हैं कि श्री गांधीके प्रति क्या रुख अख्तियार किया जाये, मुख्यतः उनकी शिक्षा-योजनाओंके और बाहरसे स्वयंसेवक बुलाने के बारेमें। किन्तु मुझे उनके इस पत्रपर उचित रूपसे विचारका समय नहीं मिला है।

 

(घ) डब्ल्यू० मॉडके पत्रका अंश

नवम्बर २७, १९१७

मुझे मालूम हुआ है कि सर विलियम विन्सेंट एक-दो दिनमें यहाँ आ रहे हैं। मेरा खयाल है कि यदि महाविभव और दोनों माननीय मन्त्रिगण उनसे मिलें और उन्हें जिलेकी हालत बतायें और उनसे यह पूछें कि भारत सरकार किस हदतक जानेके लिए तैयार है तो, इससे बात साफ हो सकती है। मुझे तो लगता है कि इसका एक ही उपाय हो सकता है और वह यह है कि श्री गांधीसे कमसे-कम छः महीने या एक सालके लिए जिलेसे चले जानेका वचन ले लिया जाये। यदि वे वस्तुतः चले जायें तो स्थिति शान्त होनेकी कुछ सम्भावना है। वहाँ जबतक उनका नाम और व्यक्तित्व लोगोंके सम्मुख आता रहता है तबतक स्थिति शान्त होनेकी कोई सम्भावना नहीं है। यदि हम श्री गांधीसे जिलेको ऐसा अवसर देनेका अनुरोध करें, और वे उसे माननेसे इनकार कर दें या उसपर अमल न करें एवं हमें उनसे जबरदस्ती करनी पड़े तो भारत सरकार हमारा समर्थन कहाँतक करेगी? निश्चय ही सर डब्ल्यू ० विन्सेंट अपने-आप हमें कोई वचन नहीं दे सकेंगे; किन्तु हमें भारत-सरकारके विचारका कोई अन्दाज नहीं है, वे हमें उसकी एक झलक तो दे ही सकेंगे।

 

(ङ) ई० ए० गेटका पत्र मुख्य सचिवको

नवम्बर २८, १९१७

मुख्य सचिव,

मुझे श्री रीडने कल बताया कि उन्हें श्री नॉर्मन और हिलसे पता चला है कि उनके देहातोंमें पूरी शान्ति है और श्री गांधीने विद्रोही किसानोंको समझाने में सहायता दी है। किन्तु उनका कहना है कि अब मुजफ्फरपुरमें बहुत क्षोभ फैल रहा है। इसका कारण वहाँ बाँटे गये कुछ पर्चे बताये जाते हैं जो वहीं निकाले गये हैं। उनमें कहा गया है कि इन पर्चेका मुजफ्फरपुर जिलेसे कोई सम्बन्ध नहीं है; उनका सम्बन्ध केवल चम्पारनसे है।

हथुआकी महारानीने भी आज सुबह मुझे कहा है कि सारन जिलेमें किसानोंमें लगान न चुकानेकी प्रवृत्ति बढ़ रही है जिसका कारण श्री गांधी द्वारा उत्पन्न क्षोभ और स्वराज्यका प्रचार है। यह बात विचारणीय है कि क्या इस आशयकी कोई घोषणा निकालना कि यदि किसान लगान न देंगे तो नुकसान उन्हींका होगा, ठीक रहेगा।

ई० ए० गेट