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परिशिष्ट

 

(ख) एल० एफ० मॉर्सहैडका पत्र एच० कूपलैंडको

शिविर रामगढ़वा
जनवरी १६, १९१८

प्रिय श्री कूपलैंड,

...हैकॉक और मैंने इस विषयमें १४ तारीखको श्री गांधीसे भेंट की। मैंने श्री गांधीको बताया कि खण्ड ३ की पहली धारा खुश्की प्रणालीके प्रचलित और समिति द्वारा अपनी रिपोर्टके अनुच्छेद ८ में स्वीकृत स्वरूपपर भी तिनकठिया-जैसा ही निषेध लगाती है। इस प्रणालीके अन्तर्गत काश्तकार आमतौरपर पेशगी रकमके बदले नील उगाना मंजूर कर लेता है। जिस जमीनपर वह नील उगानेको कहता है, वह पसन्द आनेके बाद ही बागान-मालिक पेशगी देता है, और उपजके अनुसार उसे कीमत चुकाई जाती है।

बातचीत करनेके उद्देश्यसे मैंने राजपुरकी प्रणालीको लिया। जैसा कि मैं समझता हूँ, श्री स्लाई और श्री गांधी इस प्रणालीकी राजपुरमें जाँच कर चुके हैं और उससे सन्तुष्ट हैं। श्री गांधीने आपत्ति उठाई कि यदि रैयत स्वीकृत भू-क्षेत्रोंमें नील न उगाये तो करारको विशेष रूपसे कार्यान्वित करने तथा निर्धारित क्षतिपूर्तिके लिए उसपर मुकदमा चलाया जा सकता है। और यदि उसने पेशगी ले लेनेपर भी करारका अपना भाग पूरा नहीं किया और उसके परिणामस्वरूप क्षति होती है, तो निश्चय ही उसपर मुकदमा चलाया ही जायेगा।

श्री गांधीने विस्तारसे बताया कि उन खुश्की करारोंको पचानेके लिए इस विधेयकका मसविदा तैयार किया गया है, जो अन्यथा सर एस० पी० सिन्हाकी सम्मतिके अनुसार काश्तकारी अधिनियम के अन्तर्गत वर्जित माने गये थे। तब मैंने सुझाव दिया कि वे काश्तकारी अधिनियमके अमलके अधीन छोड़े जा सकते हैं। इससे खुश्की प्रणाली, कमसे-कम, उस स्थितिमें तो रहेगी जिसमें कि वह अब है। इसके विपरीत, प्रस्तुत विधेयक तो समितिके उस इरादेके विरुद्ध इसपर निषेध लगाता है। बातचीतको एक मुद्देपर केन्द्रित करनेके लिए मैंने उन्हें श्री कैनेडीका संशोधन दिखाया, और पूछा कि क्या वे इसके पहले भागका समर्थन करते हैं जिसके जरिये नया कानून काश्तकारीकी शर्तके रूपमें तिनकटिया प्रणालीका निषेध करने तक ही सीमित रह जाता है। उसे पढ़ने के बाद उन्होंने कहा कि वे समस्याके हलकी दृष्टिसे इसके प्रथम भागको स्वीकार करनेको तैयार हैं। मैंने उन्हें बताया कि मैं नहीं चाहता कि वे उसे सहसा स्वीकार कर लें। अच्छा होगा कि वे उसपर विचार कर लें। इसके बाद उनको मैंने संलग्न पत्र लिखा और उनका जो उत्तर मिला उसे भी यहाँ संलग्न कर रहा हूँ।

मैं स्वयं यह विश्वास नहीं करता कि श्री गांधी रैयतका प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर उसपर कोई दबाव न डाला जाये तो वह अपने हिताहितका विचार करने में सक्षम है, और वह सारनमें और साथ ही चम्पारनमें तथा मुजफ्फरपुरमें खुश्की प्रणालीके अन्तर्गत जहाँ तिनकठिया नहीं है, नील उगानेके लिएबराबर तैयार थी और अब भी है। इस प्रणालीका एक मुख्य लाभ यह हैं कि यदि काश्तकारोंको महाजन या किसी और का कर्जा चुकानेके लिए पेशगीमें बड़ी रकमकी जरूरत हो तो वह उन्हें मिल