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परिशिष्ट

देकर नुकसान उठाये। यही नहीं, किसान भी अपने जमींदारसे बिना ब्याजका ऋण नहीं पायेगा और मजबूर होकर उसे साहूकारोंसे ऊँचे ब्याजपर ऋण लेना पड़ेगा।

साथ ही, यह स्पष्टतः अत्यन्त अनुचित है कि बिना किसी चेतावनी और बिना किसी मुआवजेके मौजूदा करारोंको समाप्त कर दिया जाये, और काश्तकारीकी एक ऐसी प्रणाली जो एक सौ सालसे ऊपरसे जारी है, उसे समाप्त करनेसे पहले बागान-मालिकोंको कोई नई प्रणाली उसके स्थानपर जारी करनेका मौका न दिया जाये।

चम्पारनकी रैयत स्वभावतः मूर्ख और रूढ़िवादी है, और किसी भी नई चीजको सन्देहकी दृष्टिसे देखती है। जिलेकी वर्तमान क्षुब्ध स्थिति और श्री गांधीके अनुगामियों द्वारा इस समय भी जारी आन्दोलनके कारण खुश्की प्रणालीकी कठिनाई दोगुनी हो जायेगी। इसलिए हम बहुत जोरदार ढंगसे माँग करते हैं कि मौजूदा करारोंको तीन साल तक और, या उस समय तक जारी रहने दिया जाये जबतक मूल साटोंपर दी गई पेशगीका बकाया अदा नहीं कर दिया जाता। इस अवधिमें बागान-मालिक लोग तिनकठिया प्रणालीके स्थानपर खुश्की प्रणाली लागू कर देंगे।

अक्सर उपर्युक्त रकमको वसूल करने में बहुत मुश्किल होती है। यदि रैयत अदा करनेसे इनकार कर दे तो बहुत ज्यादा परेशानी और खर्च उठाना पड़ता है। किसान जानते हैं कि प्रति व्यक्ति बकायाकी रकम इतनी छोटी होती है कि उनके लिए कोई अदालत नहीं जायेगा। लेकिन सब मिलाकर यह रकम काफी बड़ी होती है।

इसलिए यह सिफारिश की जाती है कि जबतक रैयत द्वारा ली गई पेशगीकी रकम पूरी तरह अदा नहीं हो जाती तबतक बागान-मालिकोंके हितमें उपर्युक्त स्थिति बनी रहने दी जायेगी। इससे किसानोंको कोई कष्ट नहीं होगा क्योंकि वे किसी भी समय डाकसे या दीवानी अदालतोंके जरिये पेशगीकी रकम वापस कर सकते हैं।...

[अंग्रेजीसे]
सिलेक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन
 

परिशिष्ट ११

मो० क० गांधीके साथ डब्ल्यू० मॉडकी भेंट

जनवरी ३१, १९१८

१. पहले हमने खुश्की प्रथापर चर्चा की। श्री गांधीने भूमिके किसी खण्ड-विशेष या प्लाटके बन्धीकरणपर आपत्ति प्रकट की, लेकिन कहा कि उन्हें इसपर एतराज नहीं है कि रैयत भूमिके कुछ हिस्सेमें नीलकी खेती करनेकी शर्त कर ले। तब मैंने चम्पारनके बागान-मालिकों द्वारा प्रस्तावित संशोधनमें “स्वयं उसके चुने हुए खेत या जमीनके टुकड़ेकी पैदावार” के स्थानपर “अपनी जोतके अमुक अंशकी पैदावार” शब्द