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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रखनेका सुझाव रखा। श्री गांधीने तब धारा ३, ४ और ५की अवधान धाराओंका मसविदा सुझाया। (देखिए पादटिप्पणी[१])

२. इसके बाद हमने उस प्रस्तावित संशोधनपर चर्चा की जिसका मंशा जबतक पेशगी अदा न हो जाये तबतक साटाके दायित्वको जारी रखनेका था। यह बताने के बावजूद कि इससे बहुतसी मुकदमेबाजी बच जायेगी, श्री गांधीने संशोधनको स्वीकार करनेसे बिल्कुल इनकार कर दिया।

३. फिर हमने सिरनीके बारेमें बात की। श्री गांधीका विचार था कि भले ही तुरकौलियाके मुकाबले सिरनीमें ली गई शरहबेशीकी दर कम रही हो, लेकिन जलहा या सिरनी, इन दोनों में से किसीके बारेमें विचार नहीं करना चाहिए।

४. इसके बाद हमने इस प्रस्तावपर विचार किया कि शरहबेशी वृद्धिको घटाकर जितना तय कर दिया जाये उसे सबके लिए बाध्यकारी माना जाये। श्री गांधी इस मुद्देपर सहमत हुए, लेकिन उन्होंने अपने जनवरी २४, १९१८के पत्रसे वह उद्धरण पेश किया जिसमें उन्होंने कहा था कि “किसी भी संशोधनमें अनियमितता अथवा अनधिकारिता सम्बन्धी शिकायत होनेपर अपील करनेके अधिकारको सावधानीपूर्वक बरकरार रखना होगा, उदाहरणार्थ, ऐसे मामलोंमें कि जहाँ बन्दोबस्त अधिकारीने घटनाको गलत दर्ज कर लिया हो, या जहाँ स्पष्ट हो कि क्लर्कसे भूल हो गई है।

५. जहाँतक अबवाबका सम्बन्ध है, श्री गांधीको इस प्रस्तावपर कोई आपत्ति नहीं है कि उसे सारे प्रान्तपर लागू कर दिया जाये।

जहाँतक जमींदारोंको हर मामले में उत्तरदायी बनाने विषयक श्री गांधीके स्वयंके संशोधनका सवाल है, उसे प्रवर समितिके सामने रखा जा सकता है, किन्तु यदि वह स्वीकार नहीं होता तो सरकार पूरा खण्ड वापस लेनेका वादा नहीं कर सकती। श्री गांधीको उपधारा (३) बनी रहनेपर भी जबरदस्त आपत्ति है।

६. गाड़ी साटाके मामले में श्री गांधीका आग्रह है कि इसे समाप्त करनेके लिए भी कोई व्यवस्था होनी चाहिए अन्यथा गाड़ी साटाको लेकर बहुतसे मुकदमें पैदा होंगे।

७. तावान वापस करने के प्रश्नका जिक्र तो हुआ लेकिन भेंटमें उसपर चर्चा नहीं हुई।

डब्ल्यू० मॉड

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन
 
  1. पादटिप्पणी इस प्रकार थी: “शर्त यह है कि इस उपखण्ड की कोई भी व्यवस्था रैयतको इसके खण्ड ५ की शर्तोंके अनुसार उसकी अपनी जीतके किसी भी हिस्सेपर कोई फसल-विशेष पैदा करनेका करार करनेसे नहीं रोकेगी। खण्ड ५ के लिए―शर्त यह है कि करारकी कोई भी व्यवस्था रैयतकी भूमि चुननेकी स्वतन्त्रताको समाप्त या सीमित नहीं करेगी।”