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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हम इस बुरे परिणामसे बचना चाहते हों, तो हमें बाकायदा ईमानदारी के साथ काम कर नेका निश्चय करना चाहिये। हमें तय कर लेना चाहिये कि हम कोई अनुचित माँग पेश नहीं करेंगे, और न्याय के लिए भी हड़ताल-जैसी चीजका सहारा तबतक न लेंगे, जब-तक दूसरे उपाय खतम न हो जायें। लेकिन खाली ऐसा निश्चय कर लेनेसे भी हमाराbकाम नहीं बनता। हमें मालिकोंसे मिलना होगा, अपने इस निश्चयकी बात उनसे कहनी होगी, और अपने लिए उनके मनमें विश्वास उत्पन्न करना होगा। जिस भयके कारण वे हमें ३५ प्रतिशत देने से हिचकिचाते हैं, उनका वह भय दूर करना होगा। कारीगरोंको मेरी यह आग्रहभरी सलाह है कि वे इसके लिए जरूरी कार्रवाई जल्दी ही करें।

[गुजरातीसे]
एक धर्मयुद्ध
 

परिशिष्ट १३

कमिश्नर श्री प्रैटका भाषण

[अहमदाबाद
अप्रैल १२, १९१८]

मैं चाहता हूँ कि आप मेरी बातें खूब ध्यान से सुनें, और जब वापस अपने-अपने गाँव जायें तो जो कुछ मैं कहता हूँ, उसे हर आदमीको बतायें ताकि जो बात इस समय मैं आपसे कह रहा हूँ वह सारे जिलेको मालूम हो जाये। जो बातें मैं कहने जा रहा हूँ वह सिर्फ आपके लिए ही नहीं हैं, सारे जिलेके लिए हैं। आप लोगोंको महात्मा गांधी, वल्लभभाई साहब और उनके साथ काम करनेवाले अन्य महानुभावोंने बहुत सलाहें दी हैं। उन्होंने गाँव-गाँवमें भाषण किये हैं। लेकिन आज मैं आपसे अनुरोध करूँगा कि आप मेरी बातें सुनें।

काश्तकारोंके अधिकार ऐसे हैं कि वे भूमिको पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने अधिकारमें रख सकते हैं। लेकिन इन अधिकारों के साथ-साथ कानूनन नियत किया गया लगान नियमित रूपसे अदा करनेका कर्तव्य भी जुड़ा हुआ है। केवल इसी शर्तपर आप अपनी भूमिपर अधिकार बनाये रख सकते हैं। लगान तय करनेका काम सरकारका है, और वह बिना किसी वकील या बैरिस्टरकी दखलन्दाजीके अपने अफसरोंके जरिये लगान तय करती है। लगानकी रकम तय करनेका अधिकार सरकारके सिवा किसीको नहीं है। यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें दीवानी अदालतें दखल दे सकें। कोई आदमी अदालतमें यह शिकायत लेकर नहीं जा सकता कि लगानकी दर बहुत-ज्यादा लगाई गई है। काश्तकारोंको ऐसा कोई कानूनी अधिकार नहीं है कि वे लगान-निर्धारणको स्थगित करनेकी माँग कर सकें या उसका आग्रह कर सकें । स्थगित करना न करना पूरी तरह हमारी मरजीपर है। फसलकी हालतपर, और तत्सम्बन्धी शिकायतों और आपत्तियोंपर विचार करने के बाद हम आदेश जारी करते हैं। अन्तिम आदेश जारी हो जानेके