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भाषण : द्वितीय गुजरात शिक्षा सम्मेलनमें

है। मैं आपको उन्हें पढ़ जानेकी सलाह देता हूँ। उनमें उक्त मतके समर्थक बहुतसे विचार मिलेंगे।

यदि हमें यह विश्वास हो गया है कि मातृ-भाषाको शिक्षाका माध्यम बनाना अच्छा है, तो हमें यह सोचना चाहिए कि उस विश्वासपर अमल करनेके लिए क्या उपाय किये जायें। दलीलें दिये बिना मुझे जो उपाय सूझते हैं, उन्हें सामने रखता हूँ :

१. अंग्रेजी जाननेवाले गुजराती, जानबूझकर या अनजाने भी आपसी व्यवहारमें अंग्रेजीका उपयोग न करें।

२. जिन्हें अंग्रेजी और गुजराती दोनोंका अच्छा ज्ञान है, वे अंग्रेजीमें प्राप्त अच्छी उपयोगी पुस्तकें या विचारोंको गुजरातीमें लोगोंके सामने रखें।

३. शिक्षा-समितियाँ [गुजरातीमें सब विषयोंकी] पाठ्य-पुस्तकें तैयार कराएँ।

४. धनवान लोग जगह-जगह गुजरातीके माध्यमसे शिक्षाके लिए स्कूल खोलें।

५. इसके साथ-साथ परिषदों और शिक्षा-समितियोंको सरकारके पास अर्जी भेजनी चाहिए कि समस्त शिक्षा मातृ-भाषाके माध्यमसे ही दी जाये और अदालतों और धारासभाओंका सारा कामकाज गुजरातीमें किया जाये। लोगोंको भी अपना सब काम इसी भाषामें करना चाहिए। आज जो यह रिवाज पड़ गया है कि अंग्रेजी जाननेवालेको ही अच्छी नौकरी मिल सकती है, उसे बदलकर भाषाका भेदभाव रखे बिना नियुक्तियाँ योग्यताके अनुसार की जायें। सरकारको अर्जी भी दी जानी चाहिए कि ऐसे स्कूल खोले जायें, जिनमें सरकारी नौकरोंको गुजराती भाषाका जरूरी ज्ञान दिया जा सके।

इस योजनामें एक आपत्ति दिखाई देगी। वह यह है कि धारासभामें मराठी, सिंधी और गुजराती सदस्य हैं और कर्नाटकके सदस्य भी हो सकते हैं। यह आपत्ति बड़ी तो है, परन्तु इसका निवारण किया जा सकता है। तेलगू लोगोंने इस विषयकी चर्चा शुरू की है और इसमें शक नहीं कि किसी-न-किसी दिन भाषाके अनुसार नये प्रान्त बनाने ही होंगे। परन्तु तबतक धारासभाके सदस्योंको हिन्दीमें या अपनी मातृभाषामें बोलनेका अधिकार दिया जाना चाहिए। यह सुझाव आज हास्यास्पद मालूम हो, तो माफी माँगकर इतना ही कहूँगा कि बहुतसे सुझाव शुरूमें हास्यास्पद ही मालूम होते हैं। मेरे कहनेका तात्पर्य यह है कि देशकी उन्नति शिक्षाके माध्यमके सही निर्णयपर निर्भर है। इसलिए मुझे अपने सुझावमें बहुत सार मालूम होता है। जब मातृभाषाकी कीमत बढ़ेगी और उसे राजभाषाका पद मिलेगा, तब उसमें वे शक्तियाँ देखनेको मिलेंगी, जिनकी हमें कल्पना भी नहीं हो सकती।

जैसे हमें शिक्षाके माध्यमका विचार करना पड़ा, वैसे ही हमें राष्ट्रभाषाका भी विचार करना चाहिए। यदि अंग्रेजी राष्ट्रभाषा बनाई जाये तो उसे अनिवार्य स्थान दिया जाना चाहिए।

क्या अंग्रेजी राष्ट्रभाषा हो सकती है? कुछ देशभक्त विद्वानोंका कहना है कि अंग्रेजी राष्ट्रभाषा बनाई जा सकती है या नहीं, यह प्रश्न ही अज्ञानावस्थाका सूचक है। अंग्रेजी तो राष्ट्रभाषा बन चुकी है। हमारे वाइसरॉय महोदयने[१] जो भाषण दिया

 
  1. लॉर्ड चैम्सफोर्ड (१८६८-१९३३); भारतके वाइसरॉय १९१६-२१।