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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

उसमें इन सब शिक्षकोंकी सहमति है और उन्होंने केवल अपनी जरूरतके लायक वेतन लेकर इस कामके निमित्त अपना जीवन अर्पण किया है। परिस्थितिवश मैं स्वयं इस स्कूलमें पढ़ानेका काम नहीं कर सकता, परन्तु मेरा ध्यान उस तरफ हमेशा रहता है। इस तरह मैंने बनाया तो सिर्फ ढांचा ही है, परन्तु मैं समझता हूँ कि वह थोड़ा सोच-विचार कर बनाया गया है। मुझे उम्मीद है कि आप लोग इसे ध्यानमें रखकर मेरी बातोंपर विचार करेंगे।

मुझे सदा ऐसा लगता रहा है कि आधुनिक शिक्षामें हमारी कौटुम्बिक व्यवस्थापर ध्यान नहीं दिया गया। उसकी रचना करने में हमारी जरूरतोंका खयाल रखना स्वाभाविक ही है।

मैकॉलेने हमारे साहित्यका तिरस्कार किया, हमें अन्धविश्वासी माना। जिन लोगोंने हमारी शिक्षाकी योजना बनाई, उनमें से अधिकांशको हमारे धर्मके बारेमें गहरा अज्ञान था। कितनों ही ने उसे अधर्म समझा। उन्होंने हमारे धर्मग्रंथोंको अन्धविश्वासोंका समुच्चय माना। उन्हें हमारी सभ्यता दोषपूर्ण मालूम हुई। यह समझा गया कि हमारा राष्ट्र अवनत है, और इसलिए हमारी प्रणालियोंमें बहुत दोष होने चाहिए। इससे शुद्ध भावना होते हुए भी उन्होंने प्रणाली गलत बनाई। चूँकि रचना नई करनी थी, इसलिए प्रयोजकोंने तत्कालीन स्थितियोंका ही ध्यान रखा। सारी योजना इस खयालको आगे रखकर बनाई कि उन्हें अपनी मददके लिए वकीलों, डॉक्टरों और क्लर्कोकी जरूरत होगी और हम सबको नये ज्ञानकी जरूरत होगी। इसलिए हमारे जीवनका विचार किये बिना पुस्तकें तैयार की गईं और जैसी कि अंग्रेजीमें कहावत है, 'गाड़ीके पीछे घोड़ा जोत दिया गया।'

मलबारीने कहा है कि इतिहास-भूगोल पढ़ाना हो, तो पहले बच्चोंको घरका इतिहास-भूगोल सिखाना चाहिए। मुझे याद है कि मुझे इंग्लैण्डकी 'काउण्टियों' को रटना पड़ा था और भूगोल-जैसा दिलचस्प विषय मेरे लिए जहर हो गया था। इतिहासमें भी मुझे कोई उत्साहप्रद बात नहीं मिली। इतिहास देशपर गर्व अनुभव करना सिखानेका साधन होता है। मुझे इतिहास सिखानेकी अपने स्कूलकी पद्धतिमें इस देश के बारेमें गर्व अनुभव करनेका कोई कारण नहीं मिला। उसके लिए मुझे दूसरी ही किताबें पढ़नी पड़ी।

अंकगणित और अन्य विषयोंके शिक्षणमें भी देशी-पद्धतिको कम स्थान दिया गया है। पुरानी पद्धति लगभग छोड़ ही दी गई है। हिसाब सिखानेकी देशी पद्धति मिट जानेसे हमारे बड़े-बूढ़ोंमें जल्दीसे हिसाब लगा लेनेका जो गुण था, वह हममें नहीं रहा।

विज्ञान नीरस है। उसके ज्ञानसे हमारे बच्चे कोई लाभ उठा ही नहीं सकते। खगोल-जैसे शास्त्र, जो बच्चोंको आकाश दिखाकर सिखाये जा सकते हैं, सिर्फ पुस्तकोंसे पढ़ाये जाते हैं। मैं नहीं समझता कि स्कूल छोड़नेके बाद किसी विद्यार्थीको पानीकी बूँदका विश्लेषण याद रहा होगा।

स्वास्थ्यके सम्बन्धमें शिक्षा दी ही नहीं जाती, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है। साठ सालकी शिक्षाके बाद भी हमें हैजा, प्लेग आदि रोगोंसे बचाव करना नहीं आया है। हमारे डॉक्टर भी इन रोगोंको दूर नहीं कर सके। मैं इसे अपनी शिक्षा-पद्धतिपर सबसे