पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३
भाषण : द्वितीय गुजरात शिक्षा सम्मेलनमें

बड़ा आक्षेप समझता हूँ। अपने सैकड़ों घरोंको देखनेपर भी मुझे यह अनुभव नहीं हुआ कि उनमें स्वास्थ्यके नियमोंने प्रवेश किया है। साँप काटनेपर क्या किया जाये, यह हमारे स्नातक बता सकेंगे, इसमें मुझे पूरा शक है। यदि हमारे डॉक्टरोंको छोटी उम्रसे ही आरोग्य-शास्त्र सीखनेका मौका मिला होता, तो आज उनकी जो दयनीय अवस्था है, वह न हुई होती। यह हमारी शिक्षाका भयंकर दुष्परिणाम है कि दुनियाके दूसरे सब हिस्सोंके लोगोंने अपने यहाँसे महामारीको निकाल बाहर कर दिया, परन्तु हमारे यहाँ तो वह जड़ें जमाती चली जा रही है और हजारों भारतीय बेमौत मरते जा रहे हैं। यदि इसका कारण हमारी गरीबी बताई जाये, तो इस बातका जवाब भी शिक्षा-विभागकी तरफसे मिलना चाहिए कि साठ सालकी शिक्षाके बाद भी भारतमें गरीबी क्यों है?

अब जिन विषयोंकी शिक्षा ही नहीं दी जाती, उनपर विचार करें। शिक्षाका मुख्य हेतु चरित्रगठन होना चाहिए। धर्मके बिना चरित्र कैसे बन सकता है, यह मेरी समझमें ही नहीं आ सकता। हम 'इतो भ्रष्टस्ततो भ्रष्ट:' होते जा रहे हैं; इसका भान हमें आगे चलकर होगा। इस बारेमें मैं ज्यादा नहीं कर सकता। लेकिन मैं सैकड़ों शिक्षकोंसे मिला हूँ। उन्होंने गहरे दुःखके साथ मुझे अपने अनुभव सुनाये हैं। इस सम्मेलनको इस प्रश्नपर गम्भीरता-पूर्वक विचार करना ही पड़ेगा। यदि विद्यार्थियोंकी नैतिकता चली गई, तो सब कुछ गया समझिए।

जिस देशमें ८५ से ९० फी सदी स्त्री-पुरुष खेतीके धंधे में लगे हुए हैं, उसमें इस धन्धेका जितना ज्ञान दिया जा सके उतना ही कम है। फिर भी हाई स्कूल तक के हमारे पाठ्यक्रममें उसका कोई स्थान ही नहीं है। ऐसी विषम स्थिति निभ नहीं सकती।

बुनाईका धन्धा नष्ट होता जा रहा है। किसानोंके लिए यह फुरसतका धन्धा था। इस धन्धेको हमारे पाठ्य-क्रममें स्थान प्राप्त नहीं है। हमारी शिक्षासे सिर्फ क्लर्क पैदा होते हैं। और उसका ढंग ऐसा है कि सुनार, लुहार या मोची, जो भी स्कूलके फंदेमें फँस जाते हैं क्लर्क बन जाते हैं। हम सबकी यह कामना होनी चाहिए कि अच्छी शिक्षा सभीको मिले। परन्तु यदि शिक्षित होकर भी क्लर्क बन जायें तो क्या होगा?

हमारी शिक्षामें युद्ध विज्ञानका स्थान नहीं है। मेरे खुदके लिए तो यह दुःखकी बात नहीं है। मैंने तो इसे एक सहज प्राप्त सुख माना है। लेकिन लोग हथियार चलाना सीखना चाहते हैं। जिसे सीखना हो उसे इसका मौका मिलना चाहिए। परन्तु यह तो पाठ्यक्रममें भुला ही दिया गया दीखता है।

संगीतके लिए कहीं स्थान नहीं दीखता। हमपर संगीतका बहुत असर होता है। हम काफी हदतक यह बात भूल गये हैं, नहीं तो हम किसी-न-किसी तरह अपने बच्चोंको संगीत जरूर सिखाते। वेद-मन्त्रोंकी रचना संगीतके आधारपर हुई जान पड़ती है। मधुर संगीत आत्माके तापको शान्त कर सकता है। हजारों लोगोंकी सभामें हमें कभी-कभी कोलाहल सुनाई देता है। हजारों कंठोंसे एक स्वरमें कोई राष्ट्रीय गीत गाया जाये, तो वह कोलाहलके बदले प्रेरणा बन सकता है। हजारों बालक एक स्वरसे वीर रसकी कविता गाकर शौर्य पैदा कर सकते हैं। यह कोई साधारण बात नहीं है। मल्लाह और दूसरे मजदूर मिलकर 'हरिहर', 'अल्लाबेली' जैसे नारे लगाते हैं और