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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय


खगोल सम्बन्धी मूलतत्त्वोंकी जानकारी दी जायेगी। अर्थ-शास्त्रके अभ्यासकी भी आवश्यकता है; [पाठयक्रममें] उसका भी समावेश किया गया है।

कानूनका थोड़ा-बहुत ज्ञान प्रत्येक व्यक्तिके लिए उपयोगी है, इसलिए व्यवहारमें इसकी जितनी जानकारी उपयोगी हो उतनी दी जायेगी।

बालकोंका प्रथम वर्षसे ही मनोरंजन हो और व्यायाम भी हो, इस उद्देश्यसे कवायदका विषय भी [पाठ्यक्रममें] शामिल किया गया है।

संगीतका विषय भी रखा गया है जिससे प्रत्येक विद्यार्थीको उसका कुछ ज्ञान मिले और कविता-पाठमें भी मदद मिले। पहले वर्षमें सारी शिक्षा मौखिक रूपमें ही दी जायेगी। उद्देश्य यह है कि बच्चोंको खेलते-खेलते सामान्य ज्ञानकी शिक्षा मिले और उनके मस्तिष्कका भी विकास हो। रंग, रूप, आकार आदिका ज्ञान भी कराया जायेगा जिससे बच्चेकी अवलोकन-शक्तिको बढ़ावा मिले। इस प्रकार शिक्षाका यह साधन शिक्षण-पद्धतिका एक अंग रहेगा।

हिन्दुस्तानमें परीक्षाओं-जैसी कोई चीज थी ही नहीं। यह पद्धति अभी हाल ही में शुरू की गई है। सन् १८५४ के खरीतेमें इसको महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं दिया गया। अब परीक्षाका बहुत दुरुपयोग होने लगा है; हरएक विषय परीक्षाको ध्यानमें रखते हुए पढ़ाया जाता है और विद्यार्थीके मनमें यह बात अच्छी तरह घर कर लेती है कि परीक्षामें उत्तीर्ण होना ही पर्याप्त है। अध्यापकको भी इसी तरीकेसे अपना काम करनेकी आदत पड़ गई है। इसलिए विद्यार्थीको जो ज्ञान मिलता है वह ऊपरी होता है। कोई भी विषय पूरी तरहसे नहीं पढ़ाया जाता। इस सम्बन्धमें निम्नलिखित वाक्य पढ़ने लायक है:

पिछले कुछ वर्षोंसे ये [परीक्षा] संस्थाएँ असाधारण रूपसे बढ़ गई हैं तथा हिन्दुस्तानकी समस्त शिक्षा-पद्धति इसके प्रबल प्रभावमें पड़ी हुई है। उसका परिणाम यह हुआ है कि शिक्षक भी इसी दृष्टिकोणसे कार्यका संचालन निश्चित पाठ्यक्रमके अनुसार बेमनसे करता चला जाता है तथा लिखित परीक्षाके अलावा जिसकी कसौटी नहीं हो सकती वैसे शिक्षणकी अवहेलना की जाती है। इसलिए बहुतसे शिक्षक और विद्यार्थी अपनी कार्य-शक्ति, सच्ची शिक्षापर नहीं बल्कि परीक्षामें परीक्षक कैसे प्रश्न पूछेगा, उसपर विचार करने में लगाते हैं।

परीक्षाकी पद्धति बहुत खराब है इस बातको ध्यानमें रखकर इस संस्थामें, अध्यापक ठीक तरहसे पढ़ाते हैं या नहीं तथा विद्यार्थी अच्छी तरहसे समझ पाते हैं या नहीं—इन दो उद्देश्योंको निगाहमें रखते हुए समय-समयपर विद्यार्थियोंकी परीक्षा ली जायेगी। विद्यार्थियोंको परीक्षाके भयसे मुक्त करनेका प्रयत्न किया जायेगा। ये परीक्षाएँ पाठशालाके अध्यापकों तथा उसकी [पाठशालासे] जानकारी रखनेवाले व्यक्तियों द्वारा ली जायेगी। मान्यता यह है कि जो विद्यार्थी दस वर्ष तक शिक्षा प्राप्त करेगा उसको आजकलके स्नातक जितना ज्ञान होगा। इसके उपरान्त उसे खेती तथा बुननेके कामका व्यावहारिक ज्ञान दिया जायेगा। पाठशालासे निकलनेके बाद विद्यार्थियोंमें जो शक्ति होगी उसका व्यावहारिक जीवनमें उपयोग करने में ही उनकी खरी कसौटी मानी जायेगी। विद्या सीखनेका उद्देश्य नौकरी प्राप्त करना है, इस वहमको हर तरहसे