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भाषण : सम्मेलनकी समाप्तिपर

दूर करनेकी कोशिश की जायेगी। फिलहाल सामान्य तौरपर व्यावसायिक वर्गमें अंग्रेजी पढ़े-लिखे और वह भी सरकारी पद्धतिके अनुसार शिक्षा-प्राप्त व्यक्तियोंको अच्छे स्थानोंपर नियुक्त करनेका रिवाज है। लेकिन जब इस पाठशालासे विद्यार्थी शिक्षा प्राप्तक रके निकलेंगे तब व्यापारियोंके लिए पसंद करनेको और भी क्षेत्र मिलेंगे। उस समय इस पाठशालाके शिक्षणकी कार्यक्षमताकी ओर जन-समाजका ध्यान जायेगा। व्यापारी लोग 'डिग्री' से मोहित नहीं होते, वे तो जिनमें कार्य करनेकी योग्यता होगी उसे स्थान देंगे।

यदि कोई विद्यार्थी दस वर्षतक शिक्षा प्राप्त करनेके बाद किसी एक विषयमें विशेष ज्ञान प्राप्त करना चाहे तो उसके लिए समुचित व्यवस्था करनेकी बातको भविष्य के लिए उठा रखा गया है।

निःशुल्क शिक्षा

इस पाठशालामें कोई शुल्क नहीं लिया जायेगा; और इसका खर्च दान द्वारा प्राप्त रकमसे चलाया जायेगा।

शिक्षक

वैतनिक शिक्षक रखे जायेंगे और वे सबके-सब बड़ी उम्रके तथा ऐसे लोग होंगे जिन्होंने कॉलेजकी शिक्षा पाई हो अथवा जिनका ज्ञान कॉलेजकी शिक्षाके स्तरका हो। मान्यता यह है कि बालकोंको प्रारम्भमें अच्छेसे-अच्छे शिक्षकोंकी आवश्यकता है।

[गुजरातीसे]
गुजराती, २१-१०-१९१७

१०. भाषण : सम्मेलनकी समाप्तिपर[१]

भड़ौंच
अक्तूबर २१, १९१७

मुझे धन्यवाद तो पहले ही मिल चुका है। अपनी भावना प्रकट करनेका मुझे कोई मौका ही नहीं मिला। [पूरे मनसे की गई] ऐसी सेवाओंको ही मैं मोक्षका द्वार मानता हूँ। आज तीन दिनोंसे मैं बहुत प्रसन्न हूँ। मैं श्री हरिभाईका उपकार मानता हूँ; क्योंकि वे रात-दिन एक करके आगत सज्जनोंकी सेवा कर रहे हैं। जो लोग असन्तुष्ट रह गये हों उनसे मैं उनकी ओरसे क्षमा-याचना करता हूँ। दुधारू गायकी लात भी सहन करनी चाहिए। मुझे अपनी मातृभाषासे प्यार हो गया है—उसका रंग चढ़ गया है। मुझे लगता है कि इसके बिना हमारा गुजारा नहीं हो सकता। उसके बिना हमारा उद्धार नहीं हो सकता। इसी कारण मैं जहाँ-तहाँ इसके सम्बन्धमें आग्रह करता रहता हूँ। और मेरे आग्रहका यहाँ कुछ असर पड़ा है, यह देखकर मैं आप सबका बड़ा

 
  1. सम्मेलनके दूसरे दिन; देखिए पिछला शीर्षक।